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अनेकान्त 66/3, जुलाई-सितम्बर 2013 मन को जानने वाले मानस-शास्त्री, मन को साक्षात् नहीं देखते। वे मन के अनुरूप मुख पर आने वाली भाव भंगिमाओं को साक्षात् देखकर अनुमान से यह निश्चय करते हैं कि - ‘इसके अमुक विचार होने चाहिए', क्योंकि मुख पर ऐसी भाव भंगिमाएं तभी उत्पन्न हो सकती हैं जबकि इसके मन में अमुक प्रकार का भाव हो।४ उसी प्रकार द्रव्यमन की भंगिमाओं से भावमन को जाना जाता है। मन के अन्य प्रकार : ___विभिन्न प्रकार के मन के भेद बताये गये हैं- मन का सम्बन्ध उपयोग से है। चेतना और वेदना से है। इस दृष्टि से मन के तीन भेद हैं- १. अशुभ मन, २. शुभ मन और ३. शुद्ध मन। नियमन की दृष्टि से मन के दो भेद हैं - १. नियन्त्रित मन और २. अनियंत्रित मन। भावना के उत्थान-पतन की दृष्टि से मन के दो भेद हैं - १. आशावादी मन और २. निराशावादी मन। आचार्य हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में मन के चार भेद किये हैं - १. विक्षिप्त मन २. यातायात मन ३. श्लिष्ट मन ४.सुलीन मन।५ स्थानांग सूत्र में भी मन के तीन प्रकार एवं मन की अवस्थाओं का निरूपण हुआ है। मन के तीन प्रकार - १. तन्मन, २. तदन्यमन और ३. नो-अमन तथा मन की तीन अवस्थाएं - १. सुमनस्कता, २. दुर्मनस्कता और ३. नो-मनस्कता और नो-दुर्मनस्कता।६ मन का स्थान :
हम विचारों से मन को जिस रूप में परिवर्तित करना चाहें, परिवर्तित कर सकते हैं। क्योंकि उसके असंख्यात पर्याय होते हैं। हमारे विचारों के अनुसार मन का आकार होता है। मन कहाँ पर स्थित है - इस सम्बन्ध में विविध मान्यताएँ प्राप्त होती हैं -
वैशेषिक, नैयायिक, और मीमांसक मन को परमाणु रूप में स्वीकार करते हैं। इसलिए मन नित्य एवं कारण रहित है। सांख्यदर्शन, योगदर्शन और वेदान्तदर्शन वाले मन को अणुरूप में स्वीकार करते हैं और उसकी उत्पत्ति प्राकृतिक अहंकार तत्व से या अविद्या से होना मानते हैं। बौद्ध जैन दृष्टि से मन न तो व्यापक है और न परमाणु रूप ही है, किन्तु मध्यम परिमाणवाला है।
वैशेषिक दर्शन ने जो मन को अणु रूप माना है उसका खण्डन करते हुए अकलंक कहते हैं कि मन को अणु रूप मानने पर चक्षु के जिस अंश से मन का संयोग हो उसी से रूप ज्ञान दृष्टिगोचर होना चाहिए, लेकिन सम्पूर्ण चक्षु से रूप का ज्ञान होता है। इसलिए मन अणु रूप नहीं हो सकता है।२०
बौद्ध मन को हृदयप्रदेशवर्ती मानते हैं। यह दिगम्बर परम्परा के निकट है। सांख्य परम्परा श्वेताम्बर परम्परा के निकट है क्योंकि सांख्य परम्परा के अनुसार मन का स्थान केवल हृदय नहीं है, क्योंकि मन सूक्ष्म-लिंग शरीर में जो अष्टदर्शी तत्वों का विशिष्ट निकायरूप है, प्रविष्ट है और सूक्ष्म शरीर का स्थान संपूर्ण स्थूल शरीर है, इसलिए मन संपूर्ण शरीर में व्याप्त है।२१
जैनदर्शन के अनुसार भाव मन का स्थान आत्मा है, किन्तु द्रव्य मन के सम्बन्ध में एक ही मत नहीं है। दिगम्बर परम्परा द्रव्य मन को हृदय में मानती है,२२ तो श्वेताम्बर परम्परा में