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अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013
(१) अध्यात्म एवं वैज्ञानिक संदृष्टि परक (२) अहिंसा और पर्यावरणीय तत्त्व सम्बन्धी (३) चारित्रमूलक-प्रस्तावना सम्बन्धी।
लेखक की आस्था है कि इक्कीसवीं सदी विज्ञान के आध्यात्मीकरण और अध्यात्म के विज्ञानीकरण के लिए समर्पित हो। उक्त दोनों समीक्ष्य पुस्तकें जैन साहित्य के कोषागार में वृद्धि करेंगी।
समीक्षाकार- पं. आलोक कुमार जैन उपनिदेशक, वीर सेवा मंदिर, २१ दरियागंज नई दिल्ली
(३) अक्षर (न्यास की वार्षिक परिचायिका २०१३)
सम्पादक- प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन,
प्रकाशक-श्रुतसेवा निधि न्यास, फिरोजोबाद (उ.प्र.),
समीक्ष्य कृति 'अक्षर' श्रुत सेवा निधि न्यास की वार्षिक परिचायिका है। इसकी स्थापना प्रा. नरेन्द्र प्रकाश जैन द्वारा की गई थी जिसका उद्देश्य अक्षय अक्षरों का समादर करना है। प्रतिवर्ष अक्षराभिषेकोत्सव' में श्रुताराधकों का सम्मान मातृवन्दना पुरस्कार, सरस्वती सम्मान एवं श्रुतसेवा सम्मान, नगर-गौरव सम्मान, समाजसेवा सम्मान, नवोदित प्रतिभा सम्मान आदि के द्वारा किया जाता है। शब्द (अक्षर) अमर है, कवि द्यानतराय जी लिखते हैं - सबद अनादि अनन्त, ग्यान कारन बिन मत्सर। हम सब सेती भिन्न, ग्यानमय चेतन अक्षर।।न्यास का संकल्प अक्षरसेवियों का सम्मान करते रहना है जो २००६ से अनवरत प्रवर्तमान है।
समीक्ष्य 'अक्षर' वार्षिकी में अक्षर पर शोधपूर्ण अभ्युक्तियाँ पठनीय हैं। जिनमें प्रमुख हैंप्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जैन, डॉ. जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर, प.पूज्य आचार्य विद्यानन्द मुनि, सुरेश जैन 'सरल', डॉ. सुरेन्द्र कुमार 'भारती' आदि।
इसके साथ सप्तवर्षीय सेवा सम्मान (२००६-२०१२ तक) की एक झलक इसमें प्रस्तुत की गयी है। निश्चित ही न्यास का यह सर्वश्रेष्ठ प्रकाशन युवा-साहित्यकारों और विद्वानों के लिए संदर्भित-शोध-अंक की भाँति उपादेय सिद्ध होगा। ग्लेसिंग आर्ट पेपर पर बहुरंगीन छपाई का सम्मोहन बरबस अपनी ओर खींच लेता है। एक एक पंक्ति पठनीय एवं चिंतनपूर्ण है। सम्पादक अपने आप में वरिष्ठ विद्वान, लेखक एवं प्रखर वक्ता होने से साहित्य की बहुआयामी विधा की झलक इसमें दिखती है, जिसने सिद्ध कर दिया कि अणु में विराटरूप कैसे छिपा होता है।