________________
52
अनेकान्त 66/2, अप्रैल-जून 2013
सत्य (Absolute Truth) का अनुभव किया। आत्मिक और बौद्धिक चिंतन वर्तमान विज्ञान में Thought Experiment के नाम से जाने जाते हैं, जिसका प्रयोग कर आईन्स्टाईन ने सापेक्षता के सिद्धान्त की पुष्टि की। उन्नीसवीं और बीसवीं शताब्दि में वैज्ञानिकों ने महावीर द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों की पुनः खोज की और आईन्स्टीन, बोहर, हायझेन बर्ग, मैक्स बार्न, डीबोली जैसे अनेक वैज्ञानिक ई० सन् १९८५ के बाद नोबल पुरस्कार से सम्मानित किये गये।
जिनवाणी में सत् का प्रतिपादन है और यही 'सत्' आज का विज्ञान है। दिगम्बर और श्वेताम्बर सम्प्रदायों में सैद्धान्तिक और वैचारिक मतभेद नहीं है। मतभेद है आचार संहिता में। यदि जिनवाणी को विज्ञान के आलोक में ग्रहण किया जाय तो दोनों सम्प्रदायों के विचार-आचार में मैतक्य स्थापित हो सकता है।
जिनवाणी के वैज्ञानिक स्वरूप का परिचय इस व्याख्यान में दिया गया है। भगवान महावीर की वैज्ञानिकता इन तथ्यों से सिद्ध होती है - १) आकाश, लोक और अलोक की जैन मान्यता एवं वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित
क्रमशः Cosmic Space Observable Space और Empty Space में पूर्ण समानता है। द्रव्य सत्ता, द्रव्यों की नित्यता, अनित्यता, गुण-लक्षण द्रव्यों का परमाणु और प्रदेश स्वरूप, स्कन्ध, स्कन्ध निर्माण के नियम आदि विषयों पर भी दोनों में मैतक्य है। परमाणु और चेतन तत्व जीव-अजीव पदार्थों का निर्माण ‘उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य' सिद्धान्त के अनुसार वैसे ही करते हैं जैसे Atom और Energy विज्ञान के
Law of Conservation of Mass and Energy के अंतर्गत करते हैं। ४) द्रव्यों के अस्तिकाय, परमाणु और प्रदेश स्वरूप का कथन कर भगवान
महावीर ने Dual Nature of Matter का सिद्धान्त और क्वांटम थ्यौरी की
नींव रख दी। ५) महावीर का परमाणु विज्ञान का 'क्वांटा' है, अष्टस्पर्शी परमाणु एटम है और
चर्तुस्पर्शी कार्मण परमाणु विज्ञान का फोनान (Phonon) है। स्कंध निर्माण का ‘परमाणु-परमाणु' बंध और जीव उत्पत्ति का ‘परमाणु-प्रदेश'
बंध वैज्ञानिक अवधारणा से भिन्न नहीं है। ७) भगवान महावीर ने जन्म और मृत्यु की प्रक्रिया जीव-विज्ञान की अवधारणा
के अनुरूप प्रस्तुत की है।