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________________ जैन आगमों में विभिन्न मतवाद एवं उनकी उत्पत्ति के कारण शब्द संस्कृत में भ्वादिगण के अंतर्गत निरूपित परस्मैपदी वद् धातु से घय् प्रत्यय लगकर बनता है। वद् धातु बोलने के अर्थ में प्रयुक्त है। भाषाशास्त्र के अनुसार वाद शब्द का सामान्य अर्थ किसी विषय पर आख्यान करना है। इसके लक्षणागम्य अर्थ के अनुसार किन्हीं सिद्धान्तों पर आधारित एक दार्शनिक या तात्विक परम्परा को वाद कहा जाता है। जैन दर्शन और उसके तात्त्विक चिन्तन का मूल, आगम में निहित है। जैन आगमों में भारतीय परंपरा के विभिन्न मत-दर्शन के ऐसे सिद्धान्तों का उल्लेख है जिनका भारतीय दार्शनिक चिन्तन में अपना वैशिष्ट्य है। यद्यपि जैन आगम श्रमण आचार का ही ज्यादा प्रतिपादन करते हैं तथापि आगमों में तत्कालीन समाज, राजनीति, अर्थनीति, सांस्कृतिक चिन्तन, तथा विभिन्न धर्मीय परम्पराओं अथवा अन्यतीर्थिक मतवादों से संबन्धित चिन्तन भी मुखर हुआ है। ___ महावीर युगीन भारतवर्ष विभिन्न मत, संप्रदाय, वादों एवं मान्यताओं से संकुल था। कहा जाता है कि उस समय ३६३ मतवाद अस्तित्व में थे। जो कि चार समवशरण-अक्रियावादी (१८०), क्रियावादी (८४), अज्ञानवादी (६७) और विनयवादी (३२) में बंटे हुए थे, ऐसा जैन आगम और उसके व्याख्या साहित्य से ज्ञात होता है। उनमें से प्रमुख रूप से पंचभूतवाद, तज्जीव-तच्छरीरवाद, एकात्मवाद, अकारकवाद, आत्मषष्ठवाद, क्षणिकवाद (पंचस्कन्थ तथा चतुर्धातुवाद के अंतर्गत) तथा नियतिवाद आदि प्रमुख मतवाद थे। इनको लेकर वे धर्मनायक जनसमूह में बोलते, उपदेश करते थे। इसीलिए ये विषय वाद का रूप ले चुके थे, ये वाद तब के है, जब तद्गत सिद्धान्त किसी परिपूर्ण दर्शन का रूप प्राप्त किये हुए नहीं थे। अतः व्याख्याकारों-भद्रबाहु द्वितीय, जिनदासगणी महत्तर, शीलांकसूरि, अभयदेवसूरि आदि ने विभिन्न वादों को चार्वाक, सांख्य, न्याय, बौद्धादि विभिन्न दर्शनों के साथ बड़ी ही कुशलता के साथ जोड़ा है। सूत्रकृतांग में श्रमण ब्राह्मण मतों का भी उल्लेख मिलता है। जैसे- १. वैदेही नमि, २. रामगुप्त, ३. बाहुक, ४. तारागण, ५. असित देवल, ६. द्वैपायन, ७. पाराशर', ऋषिभाषित (तीसरी शताब्दी) में पैंतालीस ऋषियों-१. देवनारद, २. वज्जीपुत्र (वात्सीपुत्र), ३. असित देवल, ४. अंगिरस, भारद्वाज, ५. पुष्पशालपुत्र, ६. वल्कलचीरी, ७. कुम्मापुत्त, ९. महाकाश्यप, १०. तेतलीपुत्र, ११. मंखलीपुत्र, १२. याज्ञवल्क्य (जण्णवक्क), १३. मेतेज्ज भयाली, १४. बाहुक, १५. मधुरायण, १६. शैर्यायण (सौरयायण), १७. विदुर, १८. वारिषेणकृष्ण, १९. आरियायण, २०. उत्कट (भौतिकवादी), २१. गाथापतिपुत्र तरुण, २२. गर्दभाल (दगभाल), २३. रामपुत्त, २४. हरिगिरि, २५. अम्बड परिव्राजक, २६. मातंग, २७. वारत्तक, २८. आर्द्रक, २९. वर्द्धमान, ३०. वायु, ३१. पार्श्व, ३२. पिंग, ३३. महाशालपुत्र अरूण, ३४. ऋषिगिरि, २५. उद्दालक, ३६. नारायण (तारायण),३७. श्रीगिरि, ३८. सारिपुत्र (सातिपुत्र),३९. संजय, ४०.द्वैपायन (दीवायण), ४१. इन्द्रनाग (इंदनाग), ४२. सोम, ४३. यम, ४४. वरुण एवं ४५. वैश्रमण के वचन संकलित हैं। इसमें सूत्रकृतांग के रामपुत्र का उल्लेख ऋषिभाषित के तेइसवें अध्ययन में, बाहुक का चौदहवें अध्ययन, तारागण का छत्तीसवें अध्ययन, आसित देवल का तीसरे अध्ययन तथा
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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