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जैन चर्या में अहिंसकाहार
संदर्भ
१. तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-७, सूत्र-४ २. अहिंसकाहार, डॉ. पी. सी. जैन, पृष्ठ-१३२ ३. श्रावकाचार संग्रह भाग-२, सागारधर्मामृत, पृष्ठ-३३, श्लोक-२५ ४. श्रावकाचार संग्रह भाग-१, अमितगति श्रावकाचार, पृ.३०८, श्लोक-४९ ५. प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग, पृष्ठ-१० ६. अहिंसकाहार, पृष्ठ-४८ ७. तत्त्वार्थसूत्र, अध्याय-७, सूत्र-३५ ८. श्रावकाचार संग्रह, भाग-४, प्रस्तावना, पृष्ठ-१६३ ९. रत्नकरण्डक श्रावकाचार, श्लोक-८४-८६ १०. वत्थुविद्या, पृष्ठ-२० ११. श्रावकाचार संग्रह, भाग-३, पृष्ठ-२०७ १२. श्रावकाचार संग्रह, भाग-३, पृष्ठ-२०७ १३. श्रावकाचार संग्रह, भाग-३, पृष्ठ-२०७
- लक्ष्मीनाथ मंदिर की गली, केकड़ी, जिला-अजमेर (राजस्थान)-३०५४०४
कधं चरे कधं चिढ़े, कधमासे कधं सये। कधं भुंजेज्ज भासिज्ज, कधं पावं ण वज्झदि ।।१०१४ ।।
(मूलाचार) हे भगवन् ! कैसा आचरण करें, कैसे ठहरें, कैसे बैठें, कैसे सोवें, कैसे भोजन
करें और किस प्रकार बोलें कि जिससे पाप-बंध न हो।
जदं चरे जदं चिट्टे, जदमासे जदं सये।।
जदं भुंजेज्ज भासेज्ज, एवं पांव ण वज्झदि ।।१०१५।। उत्तर - यत्नाचार पूर्वक गमन करें, खड़े हों, बैठे, सोवें, आहार करें तथा
यत्नाचार पूर्वक बोलें। इस प्रकार पाप का बंध नहीं होगा।