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________________ जैन चर्या में अहिंसकाहार जाते हैं और इन पदार्थों में शक्तिवर्धक गुण नष्ट हो जाते हैं और इनके प्रयोग से अनेक बीमारियों के उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है। 39 ऐसा माना गया है कि अष्टमी और चतुर्दशी को हरी सब्जियों का उपयोग नहीं करना चाहिये। मान्यता है कि चन्द्रमा की गति के फलस्वरूप अष्टमी और चतुर्दशी के दिन शरीर में पानी की मात्रा अधिक हो जाती है। हरी सब्जी में भी पानी भरपूर मात्रा में रहता है। अतः हरी सब्जियाँ खाने से शरीर में पानी की मात्रा अधिक हो जाती है जो दिल और गुर्दों पर हानिकारक प्रभाव डालती है। इसी दृष्टि से जैन वैज्ञानिकों ने कम से कम सप्ताह में एक दिन हरी सब्जी खाने के लिए निषेध किया है। आहार बनाने योग्य स्थान प्राचीन काल से ही भगवत् भक्ति के पश्चात् भोजन बनाने के स्थान को पवित्रता का स्थान दिया गया है। मुनियों के साथ-साथ श्रावकों को भी शुद्ध स्थान पर आहार लेने का निर्देश दिया गया है, इसी कारण श्रावक अशुद्ध स्थान पर भोजनशाला का निर्माण नहीं कराता । जिस भूमि के नीचे हड्डियों, मांस, मदिरा का स्थान हो वहां निवास स्थान बनाने का निषेध किया है। भोजनशाला अलग से बनाना है तो वहां भी इस प्रकार की अशुद्धि नहीं होनी चाहिए। भूमि शोधन के बाद भूमि का वह हिस्सा जहां अग्नि का वास हो उस हिस्से में भोजनशाला का निर्माण करना चाहिए। उस हिस्से को जैनाचार्यों ने आग्नेय कोण कहा है। भोजनशाला के पास में शौचालय एवं लघुशंका का स्थान नहीं होना चाहिए। भोजनशाला उस शुद्ध स्थान में बनाना चाहिए जिसमें मांस, मद्य, मधु आदि का सेवन पूर्वकाल में भी न हुआ हो, कसाईखाना न हो अथवा पूर्व का बंदीगृह आदि न हो। यदि इन दोषों से युक्त भोजनशाला होती है, तो उस भोजनशाला में बना भोजन विषकारी, रोगवर्धक, शोकवर्धक तथा कलहकारी होता है। जिन व्यक्तियों के घरों में भोजनशाला का स्थान पवित्र होता है उनके घर में शान्ति होती है, मन स्थिर रहता है, पूज्यपुरुषों की मर्यादा पूर्ववत् सम्माननीय होती है तथा पूज्यपुरुषों का आधिपत्य उस घर पर सदा बना रहता है। परन्तु वर्तमान में भोजनशाला का स्थान होटलों एवं ढावों ने लिया है जिनके स्थान का कोई निर्धारण नहीं है यहाँ तक कि जिस शमशान भूमि में व्यक्ति को पानी पीने का निषेध किया गया है वहां आज व्यक्ति नाश्ता आदि करके भी अपने आप को धन्य मान रहा है इसे कलिकाल की बलिहारी ही कहेंगे। घर में भोजनशाला अथवा चौके की शुद्धि के लिए परिवार के पुरुषों से अधिक शुद्धता महिलाओं की होती है। महिलाएँ सर्वप्रथम शुद्ध विचार युक्त तथा आनन्दयुक्त हो जिससे भोजन आनन्ददायक और बल वर्धक हो। १. महिलाओं को शिल्क की साड़ी, रेशम की साड़ी, लाख की चूड़िया, चमड़े का पर्स आदि पहनकर प्रवेश नहीं करना चाहिए। २. महिलाएं शौचादि के वस्त्रों से भोजन न पकावें । ३. भोजनशाला में कंदमूल आदि अशुद्ध और हिंसाजनक वस्तुओं के बनाने का निषेध करें। ४. भोजन में छने या गर्म पानी का ही प्रयोग करें।
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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