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________________ 68 अनेकान्त 65/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2012 नहीं लेते थे, क्योंकि बछड़े के दूध को लेना वे पाप समझते थे । बहुधा वे निराहार रहकर उपवास करते थे। कामता प्रसाद लिखते हैं कि वे शहद और अण्डा भी नहीं खाते थे । पगरखी लकड़ी की पहनते थे। चमड़े का प्रयोग नहीं करते थे। नंगे रहने की सराहना करते थे, सचमुच दया की मूर्ति थे। इस प्रकार जैन धर्म-दर्शन ने जलालुद्दीन रूमी एवं अन्य अनेक ईरानी सूफियों के विचारों को प्रभावित किया । जीव दया का यह चिंतन कुरआन मजीद से भी प्रकट हुआ है। पार -१२ सत्ताइसवें नूर 'अन-नस्ल' में २३ आयतें हैं जो मक्का में उतरीं थीं। उनमें एक प्रसंग बड़ा महत्त्वपूर्ण है- “सुलेमान के लिए उसकी सेनायें एकत्र की गयीं जिनमें जिन्न भी थे और मानव भी, और पक्षी भी, और उन्हें नियंत्रित रखा जाता था; यहाँ तक कि जब ये सब च्यूँटियों की घाटी में पहुँचे, तो एक च्यूँटी ने कहा : हे च्यूँटियों ! अपने घरों में घुस जाओ ऐसा न हो कि सुलैमान और उनकी सेनायें तुम्हें कुचल डालें और उन्हें खबर भी न हो ।” -- कुरआन मजीद, पृ. ४२४ इसी पृष्ठ पर नीचे लिखा है कि च्यूँटियों की बात कोई सुन नहीं पाता; परन्तु अल्लाह ने हसरत सुलैमान अ. को च्यूँटियों की आवाज सुनने की शक्ति प्रदान की थी । 'कुरआन मजीद का यह प्रसंग इसलिए संवेदनशील है कि संसार के छोटे से प्राणी चींटी की भी हृदय वेदना की आवाज को सशक्त अभिव्यक्ति देकर इस ग्रंथ में उकेरा गया है । यह अहिंसक भावना की सशक्त अभिव्यक्ति है । बाद में सूफी कवियों ने भी अपनी रचनाओं में उन्हीं आध्यात्मिक चेतना को आवाज दी जो जैन परम्परा की अमूल्य मौलिक धरोहर रही है। एक उदाहरण प्रस्तुत है - 'ता न गरदद नफ्स ताबे सहरा, कैद वा यावी दिले मजरूहरा । मुर्गे जाँ अज़ हत्से यावद रिहा, गर बतेग् लकुशी ईं ज़हदा ' सारांश के रूप में हम यह कह सकते हैं कि संसार की प्रत्येक धर्म, संस्कृति, सभ्यताएं और दर्शन सदा से एक दूसरे को प्रभावित करते रहे हैं । जैन संस्कृति के अहिंसावादी आचार-विचार से इस्लाम धर्म भी काफी प्रभावित हुआ । कुरआन की आयतों में तो अहिंसा, जीवदया, करुणा का प्रतिपादन तो था ही, साथ ही उदारवादी तथा व्यापक सोच रखने वाले इस्लामिक सूफियों और दार्शनिकों को जब अन्य परम्पराओं में इन अच्छाइयों का उत्कृष्ट स्वरूप दिखाई दिया तो उन्होंने उन सद्गुणों को ग्रहण किया। संदर्भ : १. कुरान मजीद, २:१,१५ २. कुरान मजीद, २७:९१ ३. दिशा बोध, कलकत्ता, अगस्त २००४, पृ. ७ - श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, कुतुब इंस्ट्टीयूशनल एरिया, नई दिल्ली-११००१६
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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