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________________ अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 किसी हरे-भरे वृक्ष की टहनी पत्ती तक भी नहीं तोड़ सकता। इस प्रकार हज करते समय अहिंसा के पूर्ण पालन का स्पष्टविधान है। ‘इहराम की हालत में शिकार करना मना है'। इतना ही नहीं, इस्लाम के पवित्र तीर्थ मक्का स्थित कस्बे के चारों ओर कई मीलों के घेरे में किसी भी पशुपक्षी की हत्या करने का निषेध है। हज-काल में हज करने वालों को मद्य-मांस का भी सर्वथा त्याग जरूरी है। इस्लाम में आध्यात्मिक साधना में मांसाहार पूरी तरह वर्जित है, जिसे तकें हैवानात (जानवर से प्राप्त वस्तु का त्याग) कहते हैं। डॉ. कामता प्रसाद लिखते हैं ‘म. जरदस्त ने ईरान में पशुबलि का विरोध कर अहिंसा की प्राणप्रतिष्ठा की थी। ईरान के शाहदारा के पाषाणों पर अहिंसा का आदेश अंकित कराया था। त तेजमशेद नामक स्थान पर एक ऐसा लेख आज भी मौजूद है। आज भारत में भी ऐसे अनेक उदाहरण हैं। कर्नाटक राज्य में गुलबर्गा में अल्लन्द जाने के मार्ग में चौदहवीं शताब्दी में मशहूर दरवेश हजरत वाजा बन्दानवाज गौसूदराज के समकालीन दरवेश हजरत शारुक्रुद्दीन की मजार के आगे लिखा है - __ “यदि तुमने मांस खाया है तो मेहरबानी कर अन्दर मत आओ" इसके अलावा कई मुस्लिमसम्राटों ने जैनों के दशलक्षण-पर्युषण पर्व पर कत्लखानों तथा मांस की दुकानों को बन्द रखने के आदेश भी दिये हैं। जिसके प्रमाण मौजूद हैं। ___ सारांश के रूप में कह सकते हैं कि इस्लाम में सद्गुण (Virtue) और दुर्गुण (Vice) का स्पष्ट विवेचन हुआ है। इस धर्म ने ईश्वर में विश्वास करने, धर्मपथप्रदर्शकों के विचारों पर आस्था रखने, निर्धनों और दुर्बलों के प्रति दयाभाव रखने की सीख दी है। इससे स्पष्ट है कि इस्लाम परम्परा में उन तत्त्वों की अवहेलना की गई है, जिनसे हिंसाभाव की उत्पत्ति या वृद्धि होती है और उन तत्त्वों को अपनाया गया है, जिनसे अहिंसाभाव की पुष्टि होती है एवं अहिंसा का विकास होता है। यदि हम वास्तव में विश्व शांति और भाई-चारा स्थापित करना चाहते हैं तो हमारा यह कर्त्तव्य होना चाहिए कि मजहबों के उन बिन्दुओं को उजागर करें जिनमें अहिंसा, प्रेम, बन्धुत्व आदि की चर्चा है तथा प्रायोगिक उदाहरण हैं, न कि सिर्फ उन्हें जिनके कारण हमारे कटु अनुभव जुड़े हैं। सूफी दर्शन और अहिंसा - इस्लामधर्म के अन्तर्गत ही सूफी संप्रदाय भी विकसित हुआ है। सूफियों का मानना है कि मुहम्मदसाहब को दो प्रकार के ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त हुए थे- एक ज्ञान को उन्होंने कुरान के द्वारा व्यक्त किया और दूसरा ज्ञान, उन्होंने अपने हृदय में धारण किया। कुरान का ज्ञान, विश्व के सभी व्यक्तियों के लिए प्रसारित किया गया, जिससे वे सद्ज्ञान के द्वारा अपने जीवन को पावन बनायें। दूसरा ज्ञान, उन्होंने अपने कुछ प्रमुख शिष्यों को ही प्रदान किया। वह ज्ञान अत्यन्त रहस्यमय था, वही सूफीदर्शन कहलाया। कुरान का किताबी ज्ञान तो ‘इल्म-ए-शाफीन' और हार्दिक ज्ञान ‘इल्म-ए-सिन' कहलाता है। सूफीदर्शन का रहस्य है- परमात्मा-सम्बन्धी सत्य का परिज्ञान करना। परमात्म-तत्त्व की उपलब्धि के लिए सांसारिक वस्तुओं का परित्याग करना। जब परमात्म-तत्त्व की अन्वेषणा ही सूफियों का लक्ष्य रहा है तो हिंसा-अहिंसा का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। हिंसा-अहिंसा
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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