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________________ अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 दोनों दर्शनों का अध्ययन करने पर विदित होता है कि इनका पारस्पिक अध्ययन इन दर्शनों के हार्द को समझने में सहायक है। दोनों दर्शनों की आध्यात्मिक दृष्टि अत्यन्त समृद्ध है तथा मानवीय चरित्र को उन्नत बनाने में सहायक है। दोनों धर्मों में क्रोधादि, रागादि विकारों पर विजय को महत्त्व दिया गया है । संदर्भ : १. यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धि स धर्मः । - वैशेषिक सूत्र १.१.२ २. सुत्तनिपात, वासेट्ठसुत्त ३. उत्तराध्ययनसूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, अध्ययन २५ गा. ३३ ४. आदिपुराण, ३८.४५ ५. व्याख्या प्रज्ञप्ति सूत्र (भगवतीसूत्र), आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, शतक १२, उद्देशक २, पृष्ठ-१३४ ६. दीघनिकाय-३३ संगितिपरियाय सुत्त में चार प्रश्नव्याकरण?, द्रष्टव्य, आगम-युग का जैनदर्शन, प्राकृत भारती अकादमी, जयुपर १९९०, पृ.५३-५४ ७. योगसूत्र में भी इनका उल्लेख हुआ है - मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुखपुण्यापुण्याविषयाणां भवनातिश्चत्तप्रसादनम् । - योगसूत्र १.३३ ८. नागार्जुन, मध्यमूल २४.१० ९. समयसार, प्रथम अधिकार, गाथा ८ १०. सुत्तपटिक, खुद्दकनिकाय, खुद्दकपाठ, रतनसुत्त 45 ११. आवश्यक सूत्र, आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर १९८२, शरण सूत्र, पृ.१० १२. देशसर्वतोऽणुमहती । - तत्त्वार्थसूत्र ७.२ १३. यदि सर्वेषां ज्ञानानां प्रमाणत्वमिष्यते प्रमाणानवस्था प्रसज्यते । - प्रमाणसमुच्चय, वृत्ति, मैसूर, १९३०, पृष्ठ- ११ १४. न प्रमाणान्तरं शब्दमनुमानात्, तथा हि सः । - दिड् नाग, उद्धृत, तत्त्वसंग्रहपंजिका, बौद्ध भारती प्रकाशन, वाराणसी, पृष्ठ-५३९ १५. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक ९, उद्देशक ६ १६. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक २, उद्देशक १ १७. व्याचयाप्रज्ञप्तिसूत्र, शतक १३, उद्देशक ७ १८. आगमयुग का जैनदर्शन, पृष्ठ-६५ १९. न्यायबिन्दु, ३.५९ २०. सन्मतितर्क, ६९ २१. पुरुषार्थसिद्धयुपाय, श्लोक २२५ २२. इन दोनों के अतिरिक्त यापनीय सम्प्रदाय भी अस्तित्व में रहा है। - 3K24-25 कुड़ी भगतासनी, जोधपुर - ३४२००५
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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