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________________ अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 ल्यूक द्वारा ८५-९५ ई., मेथ्यू द्वारा १०० ई. तथा अन्तिम रूप से 'जॉन' द्वारा सुसमाचारों को १२५ ई. तक लिखा गया। समग्र रूप में बाईबिल (न्यू टेस्टामेन्ट) की रचनावधि लगभग ७५ वर्षों की रही। (ii) मूलभूत तत्व: ईसाई धर्म में सर्वथा एकेश्वरवादी है, जिसमें ईश्वर के किसी निश्चित स्वरूप की कल्पना न करते हुए उसके अस्तित्व को उसी के द्वारा निर्मित सृष्टि में खोजने का प्रयास किया गया है। ईसाई धर्म के मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं - (१) ईश्वर - परमात्मा एक है, उसने ही यह सृष्टि निर्मित की और वही निरन्तर इसका संचालन करता है। ईसाई धर्म में यह विश्वास यद्यपि पूर्ववती ‘ओल्ड टेस्टामेन्ट' से आया है, फिर भी ईश्वर में पिता का स्वरूप देखना इसका परिष्कृत दृष्टिकोण है। ईश्वरीय शक्तियाँ असीमित हैं। वह अदृश्य, सीमातीत, दयालु, स्वामी और प्रेम का प्रतीक है। (२) ईसामसीह - ईसामसीह ईश्वर के एकमात्र पुत्र, हमारे स्वामी और उद्धारक हैं, जिन्हें परमपिता ने अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा है और वे उसके पृथक् नहीं देखे जा सकते। मनुष्य रूप में तो उनका अवतरण केवल मानवता के कल्याण हेतु हुआ था; यहाँ वे सामान्य मनुष्य की भांति जीये और मरे। ईसा के सम्बन्ध में यह चिंतन वैदिक धर्म में अवतारवाद की अवधारणा से सादृश्य स्थापित रखता है। (३) त्रयी - ईसाई धर्म पिता रूप में ईश्वर, एकमात्र पुत्र रूप में ईसा तथा पवित्रात्मा की त्रयी को ईश्वर का सर्वोच्च रूप मानता है जिसमें पिता अजन्मा, पुत्र-पिता से जन्मा और पवित्रात्मा दोनों से निसृत बताए गए हैं। कुछ ईसाई धर्मावलम्बी इस 'त्रित्व' सिद्धान्त में विश्वास नहीं रखते। (४) पाप और प्रायश्चित - ईसाईधर्म में पाप और प्रायश्चित का सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण है। इसके अनुसार मनुष्य अपने आदि पुरुष ‘आदम और इव' के काल से ही पाप का बोझ लेकर जन्मा है, क्योंकि उन्होंने ईश्वर की आज्ञा के विरुद्ध स्वर्गीय वृक्ष से सम्बद्ध प्रतिबन्ध का उल्लंघन किया था। मनुष्य को ऐसे पापों से बचाने हेतु ईश्वर ने ईसा को अपना रूप देकर भेजा है। उसके समक्ष जाकर व्यक्ति अपने पाप स्वीकारोक्ति कर प्रायश्चित कर सकता है। आज गिरजाघरों में इसकी पालना हेतु पृथक् ‘स्वीकारोक्ति' कक्ष बने हुए होते हैं। (५) उपवास - ईसाईधर्म में उपवास को भी बहुत महत्त्व दिया गया है किन्तु विभिन्न मतावलम्बियों द्वारा इसकी अवधि पृथक्-पृथक् निर्धारित की गई है। यूनानी परम्परावादी वर्ष में २६६ दिवस का, पूर्वी परम्परावादी चालीसा (क्रिसमस और इस्टर से पहले) तथा आधुनिक चर्च केवल एक सप्ताह के लिए ही उपवास निर्धारित करते हैं। (६) अहिंसा - बाइबिल में व्यक्तिगत हिंसा के विरुद्ध निर्देश दिए गए हैं। दूसरों को न केवल मारने का निषेध किया गया है, वरन् अनावश्यक क्रोध से बचने का भी सन्देश है। कहा गया है- “यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर चाँटा मारे, तो बायां भी उसके सामने कर दो"। बाइबिल में यह सम्भवतः अहिंसात्मक व्यवहार का सर्वश्रेष्ठ वक्तव्य है। (७) क्षमा - बाइबिल में क्षमा की भावना को भी बहुत महत्त्व दिया गया है। कहा गया है कि जो अपने अपराधी को क्षमा करेगा, उसे स्वर्गस्थ पिता भी क्षमा करेगा,
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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