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________________ अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 जैनाचार दूसरे के दोषों को न देखकर अपने दोषों को ही देखकर सुधारने पर जोर देता है। वही बाइबिल भी कहती है- “तू अपने भाई की आंख के तिनके को क्यों देखता है और अपनी ही आंख का लट्ठा तुझे नहीं सूझता । अथवा “पहले अपनी आँख का लट्ठा निकाल, तभी तू तेरे भाई की आंख का तिनका भलीभांति निकाल सकेगा। 30 जैनाचारशास्त्र में प्रतिक्रमण की बात भी आती है, जिसकी झलक हमें बाइबिल में भी मिलती है। जैनधर्म और ईसाई धर्म के प्रतिक्रमण का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए डॉ. स्वयंप्रभा पाटील ने लिखा है कि- “ ईसाई धर्म में पाप-प्रकाशन या पाप-स्वीकृति (कन्फेशन) को महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है। ईसाई धर्म में सभी उपासकों के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने आचरित पापों का प्रकाशन अपने धर्मगुरू के समक्ष करे और धर्मगुरू (पोप, पादरी) के द्वारा उनके प्रायश्चित्त स्वरूप जो निर्देश दिए जाएं, उनका पालन करे। ईसाई धर्म की यह परंपरा जैनधर्म की प्रतिक्रमण की अवधारणा से पर्याप्त साम्य रखती है।” (जैनधर्म में प्रतिक्रमण, पृष्ठ-२५६) ईसा मसीह क्षमा पर बड़ा जोर देते थे। जैनधर्म का मूलभूत सिद्धान्त ही है - क्षम दशधर्मों का प्रारंभ और समापन दोनों क्षमा से ही होते हैं । जैन अध्यात्म और जैनाचार के अतिरिक्त जैनधर्म के कर्म सिद्धान्त की भी कुछ झलक बाइबिल में मिलती हैं, यद्यपि इसकी स्पष्ट मान्यता वहां कैसी है - यह ज्ञात नहीं होता । परन्तु निम्नलिखित कथनों से प्रतीत होता है कि महात्मा ईसा पुनर्जन्म और कर्म सिद्धान्त में विश्वास करते थे “जो कोई व्यक्ति अपने भाई पर क्रोध करता है वह दोषी ठहराया जाएगा।” “तुम्हें उस समय तक कदापि मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती जब तक कि तुम पाई-पाई न चुका दो ।" कोई भी शुभ वृक्ष अशुभ फल नहीं देता और कोई भी अशुभ वृक्ष शुभ फल उत्पन्न नहीं करता ।" इस प्रकार हम देखते हैं कि ईसाई धर्म और जैनधर्म में अनेक समानताएँ दृष्टिगोचर होती हैं। यद्यपि असमानताएँ भी अनेकानेक उपलब्ध होती हैं, और उनसे ही दर्शन मूल विभेद होता है, परन्तु उनकी चर्चा फिर कभी करेंगे। ***** संदर्भ : १. पवित्र बाइबिल - बाइबिल सोसायटी ऑफ इंडियन, २०६, महात्मागांधी रोड, बंगलौर २. विश्वधर्म की रूपरेखा - आचार्य विद्यानंद मुनि, जैन साहित्य सदन, चांदनी चौक, दिल्ली ३. गीता और बाइबिल का तुलनात्मक अध्ययन - डॉ. गिरिजा व्यास, हंसा प्रकाशन, किशनपोल बाजार, जयपुर ४. जैनधर्म में प्रतिक्रमण : स्वरूप एवं समीक्षा नेमिनाथ नगर, विश्राम बाग, सांगली, महाराष्ट्र । - . स्वयंप्रभा पाटील, कुन्दकुन्द भारती प्रकाशन, ५. जैन आगम और बाइबिल की धर्मनीति का अध्ययन- अमरेश मुनि 'निराला' - श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विद्यापीठ, कुतुब इंस्ट्टीयूशनल एरिया, नई दिल्ली- ११००१६
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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