SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 65/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2012 ७. एक मुसलमान एक से अधिक स्त्रियाँ (अधिक से अधिक चार स्त्रियाँ) रख सकता है लेकिन उन सभी को एक ही घर में रखना आवश्यक है और उनके साथ अच्छा व्यवहार करना आवश्यक है। ८. स्त्रियों के चाल चलन को उत्तम बनाए रखने के लिए उन्हें पर्दा या बुरके को ओढ़कर बाहर निकलना आवश्यक माना जाता है। ९. मुसलमानों को मद्यपान करना तथा सूअर का मांस खाना वर्जित है। जैनों में किसी मांगलिक कार्य को करने से पहले निम्नलिखित मंगलाचरण बोला जाता है - मंगलं भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुन्दकुन्दाद्यौ जैन धर्मोऽस्तु मंगलम्।। (दिगम्बर परंपरा) जैन धर्म जीवात्मा को ईश्वर का अंश नहीं मानता है, अपितु प्रत्येक जीवात्मा की स्वतंत्र सत्ता मानता है, उसका परलोकगमन उसके कर्म पर निर्भर हैं ईश्वर न किसी को कहीं भेजता है, वे एक नहीं अनेक हैं। इस प्रकार के परमात्माओं से भिन्न देवी-देवताओं का स्वतंत्र अस्तित्व है। जैनधर्म पंच महाव्रतों को स्वीकार करता है। गृहस्थ इनका एकदेश पालन करते हैं। साधुओं के व्रत, नियम वगैरह श्रावकों से भिन्न हैं। श्रावक तथा मुनि सभी के लिए त्रिकाल सामायिक (ध्यान, समता भावना) का विधान किया गया है। जैन श्रावक या साधु रात्रि भोजन नहीं करते हैं। उपवास के दिनों में दिन और रात्रि को चतुर्विधाहार ग्रहण करने का परित्याग है। ____ 'परस्परोपग्रहो जीवानाम्' सूत्र के अनुसार जीवों का कार्य परस्पर उपकार करना है। भोगोपभोग परिमाण या परिग्रह परिमाण रखने और आहारदान, औषधि दान, अभयदान तथा ज्ञानदान देने से गरीब, अमीर सभी प्रकार के जीवों का उपकार होता है। प्रत्येक जैनी जीवन में कम से कम एक बार निर्वाणक्षेत्र (गिरनार, सम्मेदशिखर, चम्पापुर और पावापुर तथा अन्य तीर्थक्षेत्रों की वन्दना करने का भाव अवश्य रखता है)। जैनों के पवित्र पर्व अष्टाह्निका, दशलक्षण, दीपावली, महावीर जयंती, अक्षय तृतीया, रक्षाबन्धन, श्रुतपञ्चमी आदि हैं, इनमें किसी भी प्रकार से बलि आदि कर्म न कर जीवों की रक्षा करने का उपदेश दिया जाता है। सामान्य जीवन में जीव रक्षा प्रत्येक जैन का कर्त्तव्य है। जैनों में संयुक्त परिवार भी होते हैं और परिवारों में विभाजन भी होता रहता है। यह सब आपसी तालमेल पर निर्भर है। प्रत्येक गृहस्थ तथा साधु को विनयभावना रखने का उपदेश दिया गया है। हिन्दू कोड बिल जैनों पर लागू होने से जैन गृहस्थ एक ही पत्नी रखते हैं, किन्तु जैन साहित्य में जैनों के बहुविवाह के उल्लेख भी बहुत हैं। यह अपनी अपनी सामर्थ्य पर निर्भर है, तथापि धर्मशास्त्र एक पत्नीव्रत तथा पतिव्रत रखने का उपदेश देते हैं। स्त्रियों में पर्दाप्रथा जैनों की प्राचीन काल में नहीं थी, किन्तु मुसलमानी काल में उत्तरभारत में यह चालू हो गई थी। अब इसका तेजी से विलोप हो रहा है।
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy