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________________ सामाजिक संरचना - मुस्लिम धर्म को मानने वाले मुसलमान कहलाते हैं। मुसलमान का अर्थ है वह व्यक्ति जो यह मानता है कि खुदा या ईश्वर एक ही है । किसी मुस्लिम परिवार में उत्पन्न होने वाला ही मुसलमान नहीं बनता, अपितु जो कोई भी मुस्लिम या ईसाई धर्म को स्वीकार कर ले और मुस्लिम कलमा (" ला इलाही इल अल्लाह मुहम्मदुर रसूल उल्लाहा ") पढ़ ले वह मुसलमाल कहा जा सकता है। मुस्लिम धर्म अरब में उत्पन्न हुआ तथा हजरत मोहम्मद ने इसको वर्तमान सुधरा हुआ रूप प्रदान किया था। मुसलमानों का धार्मिक ग्रन्थ कुरान शरीफ है जिसमें मुसलमानों को अच्छा आचरण करने तथा समाज की प्रगति करने की सीख दी गई है। कुरान शरीफ की आदतों में मुसलमानों के पारिवारिक संगठन, विवाह, न्याय, सहकारिता, सहयोग, धर्मप्रचार, रस्म रिवाजों के पालन, अनाथों व अपाहिजों की देखभाल आदि के संबन्ध में स्पष्टतया नियम या आदेश दिए गए हैं। प्रत्येक मुसलमान के लिए कुरान शरीफ की हदीसों (हिदायतों या निर्देशों) को मानना आवश्यक होता है। जिनेन्द्र भगवान् को मानने वाले जैन कहलाते हैं। जैन शब्द जिन से बना है, जिसका अर्थ विजेता होता है। जो इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करे, वही सच्चा विजेता है। जैनों के अनुसार ईश्वर एक नहीं अनेक हैं। ईश्वर पूर्णकाम हैं, वे कृतकृत्य हैं। जैन मात्र वही नहीं है, जिसका जैन परिवार में जन्म हुआ हो, अपितु जो जैनधर्म के नियमों का पालन करे, वह जैन है। आचार्य सोमदेव का कहना है कि 'नाम्ना स्थापनातो वा सर्व जैनायतेतराम्' अर्थात् नाम की अपेक्षा तथा स्थापन निक्षेप की अपेक्षा सभी जैन हैं । जैनधर्म अनादि अनन्त है। समय समय पर तीर्थंकर जन्म लेकर इसका उपदेश करते हैं । जैनों का कोई एक धर्मग्रन्थ न होकर तीर्थंकरों की द्वादशांग वाणी में निहित है। इस द्वादशांग वाणी के आधार पर अनेक ग्रन्थ लिखे गए । द्वादशांग वाणी के अन्तर्गत वर्तमान का समस्त ज्ञान विज्ञान निहित है । प्रत्येक जैन को जिनवचनों में श्रद्धा रखना आवश्यक है। - जैन धर्म और इस्लाम - - - डॉ. रमेशचन्द जैन मुस्लिम धर्म के प्रवर्तक हजरत मोहम्मद के कुछ उपदेश इस प्रकार हैं माताओं के पैरों के नीचे स्वर्ग (जन्नत) होता है। वह सच्चा ईश्वर का उपासक नहीं है, जो अपने भाई के लिए उस वस्तु की कामना नहीं करता है, जिसकी वह स्वयं अपने लिए करता है। कुचले हुए की - चाहे वह मुस्लिम हो या अमुस्लिम, सहायता करो। रात को एक घण्टे पढ़ाना सारी रात पूजा करने से अधिक अच्छा है। क्या तुम अपने खुदा को जिसने तुम्हें पैदा किया है, चाहते हो ? पहले अपने साथियों को चाहो। -
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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