SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 65/2, अप्रैल-जून 2012 18 स्थलों सूर्याश्रम, कोशवर्द्धन एवं मालवा का वर्णन है। इनमें सूर्याश्रम का पता नहीं चलता परन्तु कोशवर्द्धन वर्तमान का शेरगढ़ तथा मालवा से तात्पर्य वर्तमान मालवा से है। इस लेख में यह बात भी कम आश्चर्यजनक नहीं कि इसमें कोशवर्द्धन (शेरगढ़) को मालवा क्षेत्रान्तर्गत बताया है, जबकि इस हाडौती अंचल से मालवा के परमार युगीन जो अन्य लेख मिले है उनमें किसी में भी कोशवर्द्धन को मालवा में नहीं बताया गया है। इस लेख का सारांश यह है कि इसमें महिल्ल नामक खण्डेलवाल वंशीय जैन व्यक्ति की पत्नि को सूर्याश्रम वासी दर्शाया है। महिल्ल के दो पुत्र श्रीपाल व गुणपाल ने आकर मालवा में वास किया। श्रीपाल के पुत्र का नाम देवपाल तथा गुणपाल के ९ पुत्र-गुणी, मर्थ, इल्हुक आदि थे। इन सभी ने रत्नात्रय (तीर्थकर शांतिनाथ, कुंथुनाथ, अरिनाथ) की मूर्तियों का निर्माण करवा कर उनकी कोशवर्द्धन में स्थापना करवायी। देवपाल के पुत्रों माल्हु व सधानु तथा गुणपाल के पुत्रों पुनि, नेमि, भरत, शान्ति ने मिलकर इन तीर्थकरों की आराधना की। इन मूर्तियों का शिल्पी शिलाश्री था। उसके पिता का नाम दमड़ी था। इन मूर्तियों की प्राणप्रतिष्ठा में देवपाल के पुत्र इल्हुक, गोष्ठिन, विशाल, लल्लुक, मौका, हरिशचन्द्र ने अनन्य सहयोग किया। बांरा जिलान्तर्गत काकूनी नामक एक पुरास्थल पर जैन धर्मावलम्बियों का बड़ा प्रभाव रहा है। यहां जैनधर्म के कई पुरास्थल है। यह स्थल झालावाड़ जिले की सीमा से भी सटा हुआ है। यहाँ से प्राप्त एक जैन तीर्थकर मूर्ति पर निम्नांकित लेख मिलता है।" सवंतु १२२७ आषाढ़ वदि २, आचार्य श्री वृषभ (भे) सेनः।। धर्कडान्वय साधु पोसद भार्या भाणिक सुत श्री डालू भार्या बाल्ही लघु भ्राताः वील्हु भार्या नायक पुत्र सीहड़ महि (जालू) माधव महिपति प्रणमतिः। उक्त लेख में वर्णित है कि आचार्य जैन वृषकसेन के आदेशानुसार धर्कट जाति के डालू और बिल्हु श्रेष्ठियों ने इस जैन तीर्थकर मूर्ति की प्रतिष्ठा आषाढ़ बदी, २ संवत १२२७ (११७० ई.) को करवायी। वर्तमान हाड़ौती सम्भाग का झालावाड़ जिला मूलतः प्राचीन मालवा का अभिन्न अंग है। यह क्षेत्र आरम्भ से ही जैनधर्म का प्रभावी क्षेत्र रहा है। यहाँ १२वी सदी से ही जैनधर्म की सुदीर्घ परम्परा के अनवरत दर्शन होते हैं। जिनका वर्णन यहाँ की अभिलेखीय परम्परा में निर्बाध गति से मिलता है। झालावाड़ के निकट झालरापाटन नगरी में ११वीं सदी का एक प्राचीन और कलात्मक
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy