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________________ 'वीर सेवा मंदिर' - में आयोजित :श्रुत पंचमी पर्व पर राष्ट्रीय व्याख्यानमाला वीर सेवा मन्दिर जैनदर्शन शोध संस्थान, दरियागंज, नई दिल्ली-२ अपने समृद्ध पुस्तकालय और अनेकान्त शोध त्रैमासिकी के माध्यम से भारत वर्ष का एक विशिष्ट शोध संस्थान है जिसकी नींव आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार सा० ने सन् १९५४-२८ जुलाई को विधिवत् रजिस्टर्ड करा कर रखी। जिसका उद्देश्य जैन साहित्य, इतिहास और तत्व विषयक खोज तथा लोक सेवा है उक्त शोध संस्थान के तत्त्वावधान में श्रुतपंचमी के पावन प्रसंग पर “जैनदर्शन का विभिन्न दर्शनों से तुलनात्मक विवेचन' विषय पर राष्ट्रीय व्याख्यानमाला २७ मई, २०१२ को आयोजित की गई, जिसमें देश के कई ख्यातिप्राप्त विद्वानों ने एकमत से स्वीकार किया कि सभी धर्मों में अनेक समानताएँ समाहित हैं। हमें सामंजस्य स्थापित करते हुए सर्वधर्म समभाव को उजागर करना चाहिये जिससे समाज और देश का विकास होगा। ___ इस अवसर पर प्रो. धर्मचन्द्र जैन, जोधपुर ने कहा कि जैनधर्म के २४वें तीर्थकर और बुद्ध दोनों ने ही दूषित कर्मकाण्ड का विरोध किया। दोनों ने दुःख, दुख के कारण, दुःख समुदाय और दुःख का निवारण आदि का उपदेश देते हुए मुक्ति का मार्ग बतलाया। जैनधर्म व्यावहारिक और पारमार्थिक है, जबकि बौद्धधर्म में आध्यात्मिकता अधिक है। जैनों में पांच महाव्रत होते हैं और बौद्धों में पांच शील हैं, जैनों के चार शरण हैं तो बौद्धों में बुद्धं शरणं गच्छामि बताया है। डॉ. रमेशचन्द्र जैन, बिजनौर ने बताया कि नौवीं शताब्दी में अनेक जैन मुनि मुस्लिम देशों में गये। वहां कलन्दर संप्रदाय उत्पन्न हुआ जो अहिंसा का कट्टरता से पालन करता था। कुरान में सभी जीवों को जिंदा रहने का हक दिया गया है। डॉ. जयकुमार जैन, मुजफ्फरनगर ने कहा कि जैन एवं वैदिक संस्कृति ने परस्पर विचारों में आदान-प्रदान किया है। दोनों में अहिंसा की मूल भावनाएं समाहित हैं। व्यसनों के त्याग की बात दोनों में कही गई है। दोनों को एक-दूसरे की अच्छाईयों को स्वीकार करना चाहिये। डॉ. वीरसागर जैन, दिल्ली ने कहा कि ईसा मसीह बचपन से ही सद्भावना से युक्त, दया, करुणा, प्रेम एवं कोमल हृदय थे। उनमें और जैनों में आडम्बर का विरोध, पुनर्जन्म की मान्यता, मैत्री-क्षमा गुण प्रचुरता से मिलते हैं। ईसा के ३३ वर्ष के जीवनकाल में ६ माह का अज्ञातवास लिखा है जिसे विद्वानों ने भारत प्रवास सिद्ध किया है और कहा है कि इन छह महीनों में वे भारत में जैन मुनियों के संपर्क में रहे। अतः उन पर जैनों के आचार-विचार का पर्याप्त प्रभाव पड़ा। उन्होंने आत्मज्ञान पर भी सर्वाधिक जोर दिया। ___ मुख्य अतिथि डॉ. सी. देव कुमार जैन, वैज्ञानिक सहायक महानिदेशक (शिक्षा योजना एवं विकास) ने दक्षिण भारत में जैनधर्म के प्रभाव पर प्रकाश डाला। व्याख्यानमाला की अध्यक्षता कर रहे प्रो. डॉ. राजाराम जैन ने कहा कि जैनधर्म और साहित्य बहुआयामी है, यह
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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