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________________ जैन कथा साहित्य : एक समीक्षात्मक सर्वेक्षण है या फिर भावी जन्म दिखाकर उनकी मुक्ति का संकेत किया गया है। कहीं-कहीं जाति स्मरण ज्ञान द्वारा पूर्वभवों की चेतना का निर्देश भी किया गया है। आगमों में जो जीवन गाथाएं वर्णित है, उनमें साधनात्मक पक्ष को छोड़कर कथा विस्तार अधिक नहीं है। आगमयुग के पश्चात् दूसरा युग प्राकृत आगमिक व्याख्याओं का युग है। इसे उत्तर प्राचीन काल भी कह सकते हैं। इसकी कालावधि ईसा की दूसरी-तीसरी शती से लेकर सातवीं शती तक मानी जा सकती है। इस कालावधि में जो महत्त्वपूर्ण जैन कथाग्रंथ अर्धमागधी प्रभावित महाराष्ट्री प्राकृत में लिखे गये उनमें विमलसूरि का पउमचरियं, संघदासमणि की वसदेववहिण्डी और अनुपलब्ध तरंगवई कहा प्रमुख है। इस काल की अंतिम शती में यापनीय परंपरा में संस्कृत में लिखा गया वारांगचरित्र भी आता है। यह भी कहा जाता है कि विमलसूरि ने पउमचरियं (रामकथा) के समान ही हरिवंश चरियं के रूप में प्राकृत में कृष्ण कथा भी लिखी थी, किन्तु यह कृति उपलब्ध नही है। इन काल के इन दोनों कथा ग्रंथों की विशेषता यह है कि उनमें आवान्तर कथाएं अधिक है। इस प्रकार इन कथा ग्रंथों में कथाप्ररोह शिल्प का विकास देखा जा सकता है। इस काल के कथा ग्रंथों में पूर्व भवान्तरों की चर्चा भी मिल जाती है। स्वतंत्र कथाग्रंथों के अतिरिक्त इस काल में जो प्राकृत आगमिक व्याख्याओं के रूप में नियुक्ति, भाष्य और चूर्णी साहित्य लिखा गया है उनमें अनेक कथाओं के निर्देश है। यद्यपि यहां यह ज्ञातव्य है कि नियुक्तियों में जहां मात्र कथा संकेत है वहां भाष्य और चूर्णि में उन्हें क्रमशः विस्तार दिया गया है। धूर्ताख्यान की कथाओं का निशीथभाष्य में जहां मात्र तीन गाथाओं में निर्देश है, वही निशीथचूर्णि में ये कथाएं तीन पृष्ठों में वर्णित है। इसी को हरिभद्र ने अधिक विस्तार देकर एक स्वतंत्र ग्रंथ की रचना कर दी है। ___ इस काल के कथा साहित्य की विशेषता यह है कि इसमें अन्य परंपराओं से कथा वस्तु को लेकर उसका युक्ति-युक्त करण किया गया है, जैसे पउमचरियं में रामचरित्र में सुग्रीव हनुमान को वानर न दिखाकर वानरवंश के मानवो के रूप में चित्रित किया गया है। इसी प्रकार रावण को राक्षस न दिखाकर विद्याधर वंश का मानव ही माना गया है। साथ ही कैकेयी, रावण आदि के चरित्र को अधिक उदात्त बनाया गया है। साथ ही धूर्ताख्यान की कथा के माध्यम से हिन्दू पौराणिक एवं अवैज्ञानिक कथाओं की समीक्षा भी व्यंगात्मक शैली में की गई है। राम और कृष्ण को स्वीकार करके भी उनको ईश्वर के स्थान पर श्रेष्ठ मानव के रूप में ही चित्रित किया गया है। दूसरे आगमिक व्याख्याओं विशेष रूप से भाष्यों और चूर्णियों में जो कथाएं है, वे जैनाचार के नियमों और उनकी आपवादिक परिस्थितियों के स्पष्टीकरण के निमित्त है। जैन कथा साहित्य के कालखण्डों में तीसरा काल आगमों की संस्कृत टीकाओं तथा जैन पुराणों का रचना काल है। जैन कथा साहित्य की रचना की अपेक्षा से यह काल सबसे समृद्ध काल है इस कालावधि में श्वेताम्बर, दिगम्बर और यापनीय तीनों की परंपराओं के आचार्यो और मुनियों ने विपुलमात्रा में जैन कथा साहित्य का सृजन किया है। यह कथा साहित्य मुख्यतः चरित्र-चित्रण प्रधान है, यद्यपि कुछ कथा-ग्रंथ साधना और उपदेश प्रधान भी है। जो
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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