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________________ अनेकान्त 65/3, जुलाई-सितम्बर जैन कथा साहित्य का सामान्य स्वरूप - यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि जब भी हम जैन कथा-साहित्य की बात करते हैं वह बहु-आयामी और व्यापक है। रूपक, आख्यानक, संवाद, लघुकथाएं, एकांकी, नाटक, खण्ड काव्य, चरितकाव्य और महाकाव्य से लेकर वर्तमान कालीन उपन्यास शैली तक की सभी कथा-साहित्य की विधाएँ उसके अंतर्गत आ जाती है। आज जब हम जैन कथा-साहित्य की बात करते हैं, तो जैन परम्परा में लिखित इन सभी विधाओं का साहित्य इसके अंतर्गत आता है। अतः जैन कथा साहित्य बहुविध और बहु-आयामी है। पुनः यह कथा साहित्य भी गद्य, पद्य और गद्य-पद्य मिश्रित अर्थात् चम्पू इन तीनों रूपों में मिलता है। मात्र इतना ही नहीं वह भी विविध भाषाओं और विविध कालों में लिखा जाता रहा है। जैन साहित्य में कथाओं के विविध प्रकार - जैन आचार्यों ने विविध प्रकार की कथाएँ तो लिखीं, फिर भी उनकी दृष्टि विकथा से बचने की ही रही है। दशवैकालिकसूत्र में कथाओं के तीन वर्ग बनाये गये हैं - अकथा, कथा और विकथा। उद्देश्यविहीन, काल्पनिक और शुभाशुभ की प्रेरणा देने से भिन्न उद्देश्य वाली कथा को अकथा कहा गया है, जबकि कथा नैतिक उद्देश्य से युक्त कथा है और विकथा वह है, जो विषय-वासना को उत्तेजित करे। विकथा के अंतर्गत जैन आचार्यों ने राजकथा, भातकथा, स्त्रीकथा ओर देशकथा को लिया है। कहीं-कहीं राजकथा के स्थान पर अर्थकथा और स्त्रीकथा के स्थान पर कामकथा का उल्लेख मिलता है। दशवकालिक में अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और मिश्रकथा- ऐसा भी एक चतुर्विध वर्गीकरण मिलता है और वहाँ इन कथाओं के लक्षण भी बताये गये हैं। यह वर्गीकरण कथा के वर्ण्य विषय पर आधारित है। पुनः दर्शवकालिक में इन चारों प्रकार की कथाओं में से धर्मकथा के चार भेद किये गये हैं। धर्मकथा के वे चार भेद हैं - आक्षेपनी, विक्षेपणी, संवेगिणी और निवेदनी। टीका के अनुसार पापमार्ग के दोषों का उद्भावन करके धर्ममार्ग या नैतिक आचरण की प्रेरणा देना आक्षेपणी कथा है। अधर्म के दोषों को दिखाकर उनका खण्डन करना विक्षेपणी कथा है। वैराग्यवर्धक कथा संवेगिनी कथा है। एक अन्य अपेक्षा से दूसरों के दुःखों के प्रति करूणाभाव उत्पन्न करने वाली कथा संवेगिनी कथा है, जबकि जिस कथा से समाधिभाव और आत्मशांति की उपलब्धि हो या जो वासना और इच्छा जन्य विकल्पों को दूर कर निर्विकल्पदशा में ले जाये वह निर्वेदनी कथा है। ये व्याख्याएं मैंने मेरी अपनी दृष्टि के आधार पर की है। पुनः धर्मकथा के इन चारों विभागों के भी चार-चार उपभेद किये गये हैं किन्तु विस्तार भय से यहाँ उस चर्चा में जाना उचित नहीं होगा। यहाँ मात्र नाम निर्देश कर देना ही पर्याप्त होगा। (अ) आक्षेपनी कथा के चार भेद हैं - १. आचार २. व्यवहार ३. प्रज्ञप्ति और ४. दृष्टिवाद। (ब) विक्षेपनी कथा के चार भेद हैं - १. स्वमत की स्थापना कर, फिर उसके अनुरूप परमत का कथन करना २. पहले परमत का निरूपण कर, फिर उसके आधार
SR No.538065
Book TitleAnekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2012
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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