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________________ 92 अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011 अतः सामान्य से द्रव्य के 6 भेद भी कहे जाते हैं। अब इन छहों भेदों के स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए आचार्य लिखते हैं कि जीवद्रव्य- "उपयोगो लक्षणम्' अर्थात् जीव का लक्षण उपयोग है। यहां आचार्य का आशय यह है कि जो उपयोग अर्थात् आत्मा के अनुविधायी (साथ-साथ रहने वाला) परिणाम से सहित है उसे जीव कहते हैं। वह उपयोग दो प्रकार का बताया गया है। ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग। ये भी आठ और चार भेद वाले हैं। किसी वस्तु का जानना ज्ञानोपयोग कहलाता है और किसी वस्तु का जानने से पहले जो सामान्य अवलोकन करना है वह दर्शन कहलाता है। ज्ञान साकार, सविकल्पक और दर्शन निराकार, निर्विकल्पक होता है, यही दोनों में अन्तर होता है। अन्य लक्षण भी कई आचार्यों ने प्रदर्शित किये हैं- चेतना जिसका लक्षण है वह जीव है। जो जीता था, जीता है, जीवेगा, वह जीव कहलाता है। आचार्य नेमिचन्द्र स्वामी ने 9 अधिकारों में जीव के स्वरूप को बताया है। वे कहते हैं किजीव, उपयोगमय, अमूर्तिक, कर्ता, स्वदेहपरिमाण, भोक्ता, संसारस्थ, सिद्ध, स्वभाव से ऊर्ध्वगमन, इन नव अधिकारों में जीव के स्वरूप को बताया गया है। जीव के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए आचार्य नेमिचन्द्र स्वामी लिखते हैं कि जो तीनों कालों में इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छवास से जीता है वह व्यवहार नय से जीव है और निश्चयनय से जो चेतना से सहित है वह जीव है।' जीव के मुख्य रूप से दो भेद हैं- संसारी और मुक्त। जो कर्मों से सहित हैं, इसी संसार में चारों गतियों में भ्रमण करते हुए दुःख प्राप्त करते रहते हैं वे संसारी जीव कहलाते हैं। जैसे- मनुष्य, तिर्यञ्च, नारकी, देव आदि। जो आठों कर्मों से रहित होते हैं, लौटकर इस संसार में कभी नहीं आयेंगे वे मुक्त जीव कहलाते हैं। जैसे- सिद्ध जीव। पुद्गलद्रव्य - "स्पर्श-रस-गन्ध-वर्णवन्तः पुद्गला:"17 यहां आचार्य उमास्वामी पुद्गल द्रव्य का स्वरूप बताते हुए लिखते हैं कि जो स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण वाला है वह पुद्गलद्रव्य कहलाता है। स्पर्श आठ प्रकार का है- हल्का, भारी, रूखा, चिकना, कड़ा, नरम, ठण्डा, गरम। रस पांच प्रकार का है- खट्टा, मीठा, कड़वा, कषायला, चरपरा। गन्ध दो प्रकार की हैसुगन्ध और दुर्गन्ध। वर्ण पाँच प्रकार का है- काला, पीला, नीला, लाल, सफेद । इन बीस पर्यायों में से यथायोग्य भेदों से जो सहित होता है वह पुद्गल कहलाता है। आचार्य अकलंक स्वामी पुद्गल का स्वरूप कहते हैं कि- भेद और संघात से पूरण और गलन को प्राप्त हों वे पुद्गल हैं। अथवा जीव जिनको शरीर, आहार, विषय और इन्द्रिय उपकरण आदि के रूप में निगले अर्थात् ग्रहण करें वे पुद्गल हैं। पुद्गल के चार भेद आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने कहे हैं-स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्ध प्रदेश और परमाणु। अनन्त समस्त परमाणुओं का मिलकर एक पिण्ड बनता है उसे स्कन्ध कहते हैं। पुद्गल स्कन्ध का आधा भाग स्कन्धदेश कहलाता है। स्कन्ध के आधे का आधा अर्थात् चौथाई भाग स्कन्धप्रदेश है और जिसका भाग नहीं हो सकता वह परमाणु है।" पुद्गल द्रव्य के दो भेद हैं - अणु और स्कन्धा
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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