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________________ अनेकान्त 64/4 अक्टूबर-दिसम्बर 2011 भेद हैं- कर्म और नोकर्म वर्तमान पर्याय से युक्त द्रव्य को भाव कहते हैं जैसे भावजीव भावजीव के दो भेद हैं- आगमभावजीव और नोआगमभावजीव इनमें से जो आत्मा जीव विषयक शास्त्र को जानता है और उसके उपयोग से युक्त है वह आगमभावजीव है। तथा जीवन पर्याय से | युक्त आत्मा नोआगमभावजीव है। उपर्युक्त चार निक्षेपों के स्वरूप को उदाहरण सहित समझने के लिए निम्न गाथा उपयोगी है 'णामजिणा जिणणाम, ठवजिणा पुण जिणंद पडिमाओ । दव्वं जिणा जिणजीवा, भावजिणा समवसरणत्था ॥ ' 89 अर्थ- 'जिनेन्द्र' यह नाम जिन का नाम निक्षेप है। जिनेन्द्र भगवान् की प्रतिमा जिन का स्थापना निक्षेप है। जिनेन्द्र का जीव जिन का द्रव्य निक्षेप है। समवशरण में स्थित जिनेन्द्र जिन का भावनिक्षेप है।" भारतीय विचार जगत् को निक्षेप सम्बन्धी जैन परम्पराओं की देन भारतीय विचार जगत् को जैनदर्शन की विचार प्रणाली ने बहुधा प्रभावित किया है। जैन परम्पराओं का अनुसरण न्यूनाधिक रूप से सम्पूर्ण भारतीय परम्पराओं में दिखाई पड़ता है। जैनों पर भी अन्य भारतीय परम्पराओं का असर अवश्य हुआ है। परस्पर आदान-प्रदान की यह परम्परा अतिप्राचीन काल से निरन्तर प्रचलन में है। ग्रन्थों का लेखन प्रारम्भ हुआ, सूत्र ग्रन्थ लिखे गए, प्रायः सभी दर्शनों ने समान शैली में रचनाएँ प्रस्तुत कर भारतीय विचार जगत् की आधारशिला रखी युग बदला, सूत्रग्रन्थों की वृत्तियाँ लिखीं गई, वार्तिक लिखे गए, टीकायें सामने आई। आज का युग उन महान् विचार सम्पदाओं के अध्ययन अध्यापन एवं प्रचार-प्रसार की होड़ में लगा है। प्रत्येक सम्प्रदाय में धर्मगुरूओं के द्वारा प्रवचन करने का चलन है। कहीं न कहीं जैन परम्पराएँ इस परिवर्तन में सहायक रहीं हैं। प्रकरण के अनुसार यदि निक्षेपविधि को ही दृष्टिपथ पर रखकर विचार किया जावे तो सकल भारतीय विचार जगत् इस विधि में आक डूबा दिखाई पड़ता है। सम्प्रदाय विद्वेष के कारण जैनंतर दर्शनों ने भले ही निक्षेप शब्द का प्रयोग नहीं किया, परन्तु उसे अपने हृदय में समाहित कर वैचारिक एवं लोकव्यवहार संबन्धी विषयों का प्ररूपण किया। ग्रन्थों के प्रणयन में सर्वप्रथम उद्देश्य कथन किया जाता है, फिर लक्षण निर्देश और परीक्षा द्वारा विवेच्य की प्रस्तुति होती है। यह उद्देश्य कथन निक्षेप के समान ही विवेच्य का निर्धारण करता है। लक्षण प्रस्तुत करते समय प्रायः व्याकरण सम्मत व्युत्पत्ति की गवेषणा की जाती है, परन्तु कुछ शब्द ऐसे होते हैं, जिन्हें संज्ञा कहकर छोड़ दिया जाता है जैसे हाथी, घोड़ा आदि । व्याकरण दर्शन के नाम निक्षेप का प्रयोग करते हुए कई संज्ञाएं निर्मित कर व्याकरण साहित्यों की रचना की। जैसे- अच्, हल्, इत् संज्ञा, भ संज्ञा, घि संज्ञा आदि ।
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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