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________________ अनेकान्त 64/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2011 85 उपर्युक्त सूत्र की टीका में भी आदाननिक्षेप समिति के अन्तर्गत निक्षेप पद आया है। यहाँ भी निक्षेप का अर्थ रखना ही विदित होता है। इसके अतिरिक्त भी टीका में क्षेप, निक्षिप्त, निक्षेपण प्रभृति पदों का प्रयोग यथावसर किया गया है। प्रायः सभी स्थलों में इसका अभिप्राय रखना या स्थापित करना ही प्रतीत होता है। नामस्थापनाद्रव्यभावतस्तन्यासः॥१/५॥ (तत्त्वार्थसूत्र) अर्थ- नाम, स्थापना, द्रव्य और भावरूप से उनका अर्थात् सम्यग्दर्शन आदि और जीव आदि का न्यास अर्थात् निक्षेप होता है। उपर्युक्त सूत्र की टीका करते हुए सर्वार्थसिद्धिकार ने नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव को निक्षेप संज्ञा प्रदान की है। निक्षेप पद के साथ विधि पद का समास करते हुए दो बार "निक्षेपविधि" शब्द का प्रयोग किया है। तत्त्वार्थसूत्र आचार्य उमास्वामि ने इस सूत्र में नामादि को निक्षेप संज्ञा से उद्घोषित किया है, तथापि पूज्यपाद स्वामी का नामादि को निक्षेप संज्ञा देना आगमपरम्परा का अनुसरण ही माना जाएगा। प्रस्तुत नामादि निक्षेप को विवेच्य मानकर लिखा जा रहा है। निक्षेप की व्युत्पत्ति एवं स्वरूप 'निक्षिप्यत इति निक्षेपः स्थापना।' अर्थ- रखना या स्थापित करना निक्षेप है। इसी अर्थ को पुष्ट करते हुए राजवार्तिक में कहा गया है- 'न्यसनं न्यस्यत इति वा न्यासो निक्षेप इत्यर्थः।' अर्थ- सौंपना या धरोहर रखना निक्षेप कहलाता है। न्यायविषयक ग्रन्थों में भी इसी प्रकार व्युत्पत्ति प्राप्त होती है। 'प्रमाणनययोनिक्षेप आरोपणं स नामस्थापनादिभेदचतुर्विधमिति निक्षेपस्य व्युत्पत्तिः।' अर्थ- प्रमाण या नय का आरोपण या निक्षेप नाम, स्थापना आदि रूप चार प्रकारों से होता है। यही निक्षेप की व्युत्पत्ति है।' जुत्तीसुजुत्तमग्गे जं चउभेयेण होइ खलु हवणं। कज्जे सदि णामदिसु तं णिक्खेवं हवे समसं।२७०॥ अर्थ- युक्ति मार्ग से प्रयोजनवश जो वस्तु को नाम आदि चार भेदों में क्षेपण करे, उसे आगम में निक्षेप कहा जाता है।" तिलोयपण्णत्तिकार निक्षेप को उपाय के रूप में देखते हैं। 'णिक्खेवो वि उवाओ।' अर्थ- नामादि के द्वारा वस्तु में भेद करने के उपाय को निक्षेप कहते हैं इस विषय में धवलाकार का कथन अत्यन्त स्पष्ट है। णिच्छये णिण्णये खिवदि त्ति णिक्खवो।' अर्थ- निश्चय में अर्थात् निर्णय में जो रखता है, वह निक्षेप है। 'संशये विपर्यये अनध्यवसाये वा स्थितं तेभ्योऽपसार्य निश्चये क्षिपतीति निक्षेपः। अथवा बाह्यार्थ विकल्पो निक्षेप: अप्रकृतनिराकरणद्वारेण प्रकृत-प्ररूपको वा।' अर्थ- संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय में अवस्थित वस्तु को उनसे निकालकर जो निश्चय में क्षेपण करता है, उसे निक्षेप कहते हैं। अर्थात् जो अनिर्णीत वस्तु का नामादिक द्वारा निर्णय करावे,
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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