SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 364
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक और उनके षड् आवश्यक कर्त्तव्य देवसेवा गुरूपास्तिः स्वाध्यायः संयमस्तपः। दानं चेति गृहस्थानां षट् कर्माणि दिने दिने। महापुराण में आचार्य जिनसेन ने श्रावक के करने योग्य षट् आवश्यक क्रियाओं का वर्णन किया है, उन्होंने कहा है कि भरतराज ने उपासकाध्ययन नामक अंग से उन व्रती लोगों के लिए इज्या (पूजा) वार्ता, दत्ति (दान), स्वाध्याय, संयम और तप का उपेदश दिया है। चारित्रसार में पूरे छः आवश्यक जिनसेन की तरह की हैगृहस्थस्येज्या वार्ता दत्तिः स्वाध्याय संयमः तप इत्यार्यषट् कर्माणि भवन्ति। चारित्रसार में यह बात अलग है कि षडावश्यकों को पालने वाले गृहस्थ दो प्रकार के होते हैं- जाति क्षत्रिय और तीर्थ क्षत्रिय। जाति क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र के भेद से चार प्रकार है। तीर्थ क्षत्रिय अपनी आजीविका के भेद से अनेक प्रार के हैं। पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका में भी देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान ये छ: कर्म ही बतलाये हैं। प्रश्नोत्तरश्रावकाचार में यत्नपूर्वक, मृत्यु पर भी षडावश्यक करणीय माने गये हैं। इन्होंने समता, वन्दना दान, कायोत्सर्ग, संयम और ध्यान को अलग-अलग श्लोकों में षडावश्यक माना है। धर्मसंग्रहश्रावकाचार में आचार्य जिनसेन के समान ही इज्या, वार्ता, तप, दान, स्वाध्याय तथा संयम इन छः कर्मों को प्रतिदिन करने वालों को गृहस्थ माना है।" कुन्दकुन्द श्रावकाचार में सबसे अलग संख्या निर्धारित की और श्रावकों के दस गृहस्थ धर्म बतलाये हैं दया दानं दयो देव-पूजा भक्तिर्गुरौ क्षमा। सत्यं शौचस्तपोऽस्तेयं धर्मोऽयं गृहमेधिनाम्॥१२ अर्थात् दया, दान, इन्द्रियदमन, देव-पूजन, गुरुभक्ति, क्षमा, सत्य, शौच, तप, अचौर्य यह गृहस्थों का धर्म कहा गया है। यद्यपि इन्हें यहाँ आवश्यक शब्द से नहीं कहा गया तथापि कही भी षडावश्यकों का पृथक् उल्लेख न होने के कारण हम इन्हीं को दशावश्यक मान लेते हैं। पद्मकृत श्रावकाचार में पुनः उन्हीं षडावश्यकों को स्वीकार किया गया है जो मुनियों में होते हैं१. देवपूजा देवदर्शन ही सम्यग्दर्शन का निमित्त है, देव पूजा को श्रावकों को प्रतिदिन करने वाले आवश्यकों में रखकर अनिवार्य माना गया। आचार्यों ने देवपूजा के बारे में एक स्वर में समर्थन दिया। देव पूजा की विधियों में यद्यपि कुछ अन्तर दिखायी देते हैं किन्तु वे सभी श्रावक को धर्म से जोड़ने रखने हेतु आवश्यक जान पड़े इसलिये उनका समावेश किया गया है। देव पूजा गृहस्थों का आवश्यक कर्त्तव्य है। आचार्य समन्तभद्र कहते हैं- गृहस्थ को आदरपूर्वक नित्य सर्वकामनाओं के पूर्ण करने वाले और कामविकार को जलाने वाले देवाधिदेव जिनेन्द्र भगवान् की पूजा अर्चना जरूर करनी चाहिए। महापुराण में आचार्य जिनसेन ने, अर्हन्त देव की पूजा के लिए पांच प्रकार बताये हैं, वे पांच प्रकार हैं
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy