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________________ अनेकान्त 64/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2011 10. आदिमसम्मत्तद्धा समयादो छावलित्ति वा सेसे। अणअण्णदरुदयादो णासियसम्मोत्ति सासणक्खो सो।। गो0जी0 19 11. गोम्मटसार जीवकाण्ड 21 12. जो सद्दहदि जिणुत्तं सयाइट्ठि अविदो। णो इंदियेषु विरदो णो जीवे वरेतसे वापि, धवल 1/1/12 13. तत्त्वार्थवार्तिक 9/1/15 पृष्ठ-586 14. धवल 1/1/13 15. गोम्मटसार जीवकाण्ड 16. संजलण णोकसाणुदयादो संजदो हवे जम्हा। मलजणणपमादो विय तम्हा हु पमत्तविरदो सो।। वत्तावत्तपमादे जो वसइ पमत्तसंजदो होदि। सयलगुण सीलकलिओ महव्वई चित्तलायरणो।। विकहा तहा कसाया इंदिय णिद्दा तहेव पणयो य। चदु-चदु पणमेगेगं होंति पमादा दु पण्णरस।। गो0जी0 32-34 सम्यग्दर्शनादिषु गणुशीलेषु कुशलानुष्ठानेषु अनवधानमनादरः प्रमाद इति लक्षणस्य विकथादिषु पञ्चदशष्वपि विद्यमानत्वात्। प्रमाद्यति जीवः कुशलानुष्ठनात् प्रच्यवते अनेनेति प्रमाद इति निरुक्ति सद भावात् (म0प्र0 टीका 34) 17. (क) पमत्तो व सो संजमो य सो पमत्त संजमो अ? पच्चक्खाणावरणोदयरहिओ संजलणाणं उदए वटठमाणे पमाणसहिओ पमत्तसंजओ। विकहाकसायविकडे इन्दिय-णिद्दा-पमाय पंचविहो। एए सामनन्तरे जुत्तो विरओवि हु पमत्तो।। जहरागेणपमत्तो पमत्तविरओ त्ति णायव्वो।। शतक चू0पृ0 8/1 (ख) प्रमाद्यति स्म संयमयोगेषु सीदति स्मेति। पूर्ववत् कर्तरि क्तप्रत्यये प्रमत्तः अथवा प्रमदनं प्रमत्तः, प्रमत्तः प्रमादः स च मदिराविषय-कषाय-निद्रा विकथानां पञ्चानामनन्यतमः सर्वे वा। शतक हेमवृत्ति 9 पृष्ठ-1612 18. औत्सर्गिक सचेलक्यं लोचोव्युत्सृष्ट देहताम्। प्रतिलेखनमित्येव लिंगयुक्तं चतुर्विधम्।।मूलाचार 19. अधुव्वकरण पविटठ सुद्धिसंजदेसु अत्थि उवसमा खया। धवला पु0 1 पृष्ठ-180 20. अणियटिठ वादर सांपराइय पविट्ठ सुद्धिसंजदेसु अत्थि उवसमाखया। षट्खण्डागम 1/17 21. धुदकोसुंभयवत्थं होहि जहा सुहुमरायसंजुत्तं। एवं सुहुमकसाओ सुहुमसरायोत्ति णादव्व।। गो.जी. 59 22. धवल 1/1/20 पृष्ठ-188 23. गोम्मटसार जी0 गाथा 61 24. धवल 1/1/20 पृष्ठ 190 25. णिस्सेसखीणमोही फलिहामल भायणुदय समचित्तो। खीणकसाओ भण्णदि णिग्गंथो वीयरायेहि।। गो0जी0 62 26. गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा 63-64 27. जघन्य अंश जिस का दूसरा टुकड़ा नहीं होता उसको अविभागी प्रतिच्छेद कहते हैं। 28. धवन 1/1/22 पृष्ठ-192 29. गोम्मटसार जीवकाण्ड गाथा 65 30. धवल पृष्ठ 1 पृ0 193 - अध्यक्ष संस्कृत विभाग दि० जैन कॉलेज, बड़ौत (उ.प्र.) 250611
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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