SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मसिद्धान्त के कतिपय तथ्यों का विवेचन-विश्लेषण आत्मा और कर्म-सम्बन्ध अनादि से है- जब से जीव है तभी से जीव के साथ कर्मों का संयोग भी है। चूँकि जीव अनादि है। अतः उसके साथ कर्मसंबन्ध भी अनादि है। अनादिकाल से ही ये दोनों बंधी हुई दशा में पाये जाते हैं। जैसे सोने की खान में सोना तथा अन्य विजातीय पदार्थ अनादि से ही संयुक्त अवस्था में पाये जाते हैं। खदान में उन्हें किसी ने मिलाया नहीं है। इसी तरह किसी ने जीव के साथ कर्मों का जबरन संबन्ध नहीं कराया है। परमात्म प्रकाश में भी उल्लेख है15 "जीवों के कर्म अनादिकाल से हैं। इस जीव ने कर्म नहीं उत्पन्न किये तथा कर्मो ने भी जीव को नहीं उपजाया; क्योंकि जीव और कर्म का संबन्ध अनादि है।" कर्मप्रकृति में भी ऐसा ही कथन है-16 'संसारी जीव का स्वभाव रागादि रूप से परिणत होने का है और कर्म का स्वभाव उसे रागादिरूप से परिणमाने का कहा जाता है। इस तरह जीव और कर्मो का यह स्वभाव अनादिकालिक है। अतः दोनों की सत्ता भी अनादिकाल से है।" पंचास्तिकाय में आ.श्री कुन्दकुन्ददेव ने कहा है। "जन्म-मरण के चक्र में पड़े हुए संसारस्थ प्राणी के रागद्वेष रूप परिणाम होते हैं। उनसे नये कर्म बँधते हैं। कर्मों से गतियों में जन्म लेना पड़ता है। जन्म लेने से शरीर मिलता है। शरीर में इन्द्रियाँ होती हैं और इन्द्रियों से विषयों का ग्रहण होता है। विषयों के ग्रहण से इष्ट विषयों में राग और अनिष्ट विषयों में द्वेष करता है। इस तरह संसारचक्र में पड़े हुए जीव के भावोंसे कर्मबंध और कर्मबंध से रागद्वेषरूप भाव होते रहते हैं। यह संसारचक्र अभव्य जीवों की अपेक्षा अनादिअनंत है तथा भव्यों की अपेक्षा अनादि-सान्त है।" निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि जीव और कर्म का संबन्ध अनादि है। तत्त्वार्थसूत्र में आ. श्री उमास्वामी कर्मजन्य शरीरों की विशेषताएं बतलाते हुए कहते हैं कि औदारिक, वैक्रयिक, आहारक, तैजस और कार्मण- इन पांचों में से अन्तिम दो शरीर तैजस औ कार्मणशरीर पूर्व शरीरों से उत्तरोत्तर अनन्तगुणे- अनन्तगुणे सूक्ष्म हैं, प्रतिघात रहित हैं, सभी संसारियों के अनादिकाल से संबन्धित हैं तथा अन्तिम कार्मणवर्गणाओं से बना हुआ कार्मण-शरीर भोग रहित है। अस्तु, कर्म और जीव परस्पर अनादिकाल से कर्मसिद्धान्त का आधार जीव-पुद्गल का निमित्त-नैमित्तिक संबन्ध जड कर्म/ मूर्त पुद्गल तथा अमूर्त जीव के बीच निमित्त-नैमित्तिक-भावरूप- संबन्ध है। कर्म-संश्लिष्ट शरीर और संयोगी धन-धान्यादि पदार्थों का प्रभाव हम सभी के जीवन पर पड़ता है जिसकी प्रतीति हम सभी सदा करते रहते हैं। इनके प्रति हमारी चित्तवृत्तियाँ आकृष्ट होती हैं। शरीर में रोग/ पीड़ा होने पर दुःख होता है। इससे सिद्ध है कि जड़ पदार्थो में भी अमूर्तिक जीव के भावों को प्रभावित करने की शक्ति है। इसी से इनके बीच निमित्त-नैमित्तिक संबन्ध होने की पुष्टि होती है। ऐसा ही संबन्ध इस जीव का अन्य चेतन पदार्थों के साथ भी है। तभी तो हम पुत्र-कलत्र आदि चेतन पदार्थो के सुख में सुखी और दुःख में दुःखी होते हैं। क्रोधी को
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy