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________________ 82 अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 पापकर्म बंध में मंदता संसार में सबसे अधिक पापकर्म का बंध रागद्वेष के कारण होता है तथा जब व्यक्ति के अन्दर धर्म निरपेक्षता अर्थात् भेदभाव से रहित अवस्था का आगमन हो जाएगा तो वह रागद्वेष नहीं करेगा और निष्पक्ष भाव से निर्णय करेगा। समाज में सम्मान वृद्धि समाज में जो व्यक्ति निष्पक्ष भाव से निर्णय करता है अथवा निर्णय सुनता है उस व्यक्ति का सम्मान प्रत्येक व्यक्ति अंतरंग से करता है। भेदभाव रहित समाज का निर्माण धर्म निरपेक्ष होने पर समाज का प्रत्येक व्यक्ति अच्छे विचारों को ग्रहण करने में स्वतंत्र होगा। उस पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होगा तथा वह उच्च-नीच भावना से ग्रसित नहीं होगा, जिससे भाईचारे में वृद्धि होगी तथा आतंकवाद जैसी समस्याओं का निवारण हो सकेगा। आतंकवाद का प्रचलन मात्र आपसी मतभेद के कारण बढ़ रहा है जब मतभेद नहीं होगा तो समस्या नहीं रहेगी। वर्तमान समय में प्रत्येक घर में या समाज में आपसी झगड़े का कारण मनभेद है और वह मनभेद स्वयं की अपेक्षा की पूर्ति दूसरे के द्वारा नहीं होने के कारण से होता है। इस अपेक्षा से रहित जीवन का नाम निरपेक्ष भाव है। सम्यक् कार्य के निर्णय की शक्ति में वृद्धि आपसी कलह या एकान्त धारणा के साथ मन कुण्ठित हो जाता है जिससे मन में शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता में कमी होती है। जब मनुष्य दोनों पक्षों को सुनकर अनेकान्त या धर्म निरपेक्षता से मन को एकाग्र करता है मन में किसी के प्रति संदेह नहीं रहता तो अच्छे कार्यों के प्रति निर्णय शीघ्रता से ले लेता है। धर्म निरपेक्षता के अभाव से हानि: १. सांप्रदायिक मतभेद एवं वैमनस्यता आज वर्तमान में संगठन के नाम पर या धर्म के नाम पर झगड़े प्रारंभ हो गये हैं। सभी लोगों में अपना मत स्थापित करने की तथा दूसरे के मत को बहिष्कृत करने की भावना बलवती हो गई है। प्रत्येक व्यक्ति अपने विचारों से अपने संगठन या धर्म को मजबूत करना चाहता है, परन्तु वह धर्म के मर्म को भूलकर अपने मत की पुष्टि करता है यदि वह धर्म के मर्म को समझ जाये तो वह अपने साधर्मी भाई के मत के वहिष्कार करने से पहले उसकी अपेक्षा को समझेगा। इसे ही धर्म निरपेक्षता कहते हैं परन्तु इस बात को जाने बिना एक-दूसरे के प्रति द्वेष भाव उत्पन्न कर लेते हैं और संगठनों में वैमनस्यता प्रारंभ हो जाती है। सांप्रदायिक मतभेद एवं वैमनस्यता समाप्त करने के लिए धर्म निरपेक्षता आवश्यक है। धर्म से आस्था समाप्त होना सांप्रदायिक मतभेद के कारण धार्मिक स्थलों में और धार्मिक कार्यक्रमों में झगड़े, मनमुटाव प्रारंभ हो गये हैं। इस कारण लोग धार्मिक मंचों को भी राजनीतिक मंचों के समान उपयोग करने लगे हैं। वर्तमान युवापीढ़ी या सामान्य जन जब इस प्रकार का वातावरण
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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