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________________ अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 69 (गा. 983)। प्रत्येक जिनभवन में 108 गर्भगृह और रत्न स्तंभों सहित एक-एक मण्डप है। प्रत्येक गर्भगृह में सिंहासनादि युक्त एक-एक रत्नमय जिनप्रतिमा होती है जो आदिनाथ भगवान् सदृश 500 धनुष ऊँची है (गा. 985-86)। जिनप्रतिमाओं की शोभा का वर्णन- ( गाथा 988 ) ये जिन प्रतिमाएँ चौंसठ चमरों से वीज्यमान हैं। नागकुमार के 32 युगलों और वक्षों के 32 युगलों सहित एक एक गर्भगृह में सदृश पंक्ति में शोभायमान हैं। उन प्रतिमाओं के पार्श्वभाग में श्री (लक्ष्मी) देवी, श्रुत (सरस्वती) देवी, सर्वांण्ह यक्ष और सनत्कुमार यक्ष की प्रतिमाएँ तथा झारी, दर्पण, कलश आदि अष्टमंगल द्रव्य हैं। ये प्रत्येक मंगल द्रव्य 108 108 प्रमाण होते हैं (गा. 987-989), आगे की गाथाओं में गर्भगृह के बाहर शोभा का वर्णन है। वहां सिद्धार्थ और चैत्व नाम के दो वृक्ष हैं। इनकी चारों दिशाओं की पीठ में चार सिद्ध प्रतिमाएँ और चार अरहन्त प्रतिमाएँ विराजमान हैं, महाध्वजाएँ स्थित हैं (गा.1002)। ध्वजपीठ के आगे जिनमंदिर हैं। प्रत्येक जिनमंदिर की चारों दिशाओं में सिंह, वृषभ, हाथी, गरुड़, मयूर, चन्द्र, सूर्य, हंस, कमल और चक्र से चिन्हित 108, 108 मुख्य ध्वजाऐं हैं। इनके साथ 108-108 छोटी ध्वजाएं होती हैं। द्वितीय और तृतीय कोट के अन्तराल में चार वन हैं जिनमें भोजनांगादि दश प्रकार के कल्पवृक्ष हैं, पुष्प और फलों से युक्त चैत्यवृक्ष हैं जिनके चारों ओर प्रातिहार्य युक्त जिनबिंब विराजमान हैं। इस प्रकार जिनप्रतिमाएं और जिनमंदिर दिव्य शोभायुक्त हैं, जो वैराग्य भावबोधक हैं। चतुर्णिकाय के देवों द्वारा जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक पूजन देव उत्पन्न होने के उपरांत सरोवर में स्नान करते हैं फिर अभिषेक और अलंकारों को प्राप्त होकर सम्यग्दृष्टि जीव स्वयं जिनेन्द्र भगवान् का अभिषेक पूजन करते हैं किन्तु मिथ्यादृष्टि देव अन्य देवों द्वारा संबोधित किये जाने पर जिनपूजन करते हैं। (गा. 551-553 ) । इससे स्पष्ट है कि भगवान् की शोभा के रूप में स्थापित नागयुगल, यक्षयुगल और अन्य देवियों यक्षों की पूजा देवलोक के देवों द्वारा नहीं की जाती क्योंकि वे अपूज्य हैं। वे तो जिनेन्द्र भगवान् की शोभा, भक्त-सेवक के रूप में स्थापित हैं। उनकी समर्पित सेवा का फल जिनेन्द्रदेव की निकटता है न कि जिनेन्द्र सम पूज्यता जैनदर्शन में असंयमी, रागी देवी-देवता अपूज्य हैं। नारी और नारी प्रतिमा पूज्य नहीं है। सर्वाण यक्ष और सनत्कुमार यक्ष को धर्मचक्र संवाहन करने के कारण सम्मान मिला। इन्द्रादिक को यह सम्मान नहीं मिला। प्रतीकात्मक श्रीदेवी और श्रुतदेवी की मूर्तियों का औचित्य गाथा 988 में भगवान् जिनेन्द्रदेव की प्रतिमा के पार्श्व में श्रीदेवी और श्रुतदेवी की मूर्तियों की शोभा का उल्लेख है। त्रिलोकसारजी में इन देवियों के नाम, वैभव या जिनशासन में किसी योगदान का कोई संकेत नहीं है। गाथा 555 की उत्थानिका में शंका की गई कि देवादिक संपत्ति किन जीवों को प्राप्त होती है? उसके समाधान में गाथा 555
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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