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________________ 60 अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 परवर्ती महाकवि दौलतराम आदि ने भी किया है। ये तीनों जैन कवि अपनी आध्यात्मिक विचारधारा के लिये पर्याप्त प्रसिद्ध हैं। जहाँ पण्डित बनारसीदास ने समयसार-नाटक नामक अपनी कृति के माध्यम से आध्यात्मिकता का निरूपण किया है, वहीं पण्डित द्यानतराय ने भी विविध आध्यात्मिक पदों एवं पूजाओं आदि के माध्यम से अपनी कीर्ति को अक्षुण्ण रखा है। महाकवि दौलतराम ने छहढाला नामक कृति के माध्यम से उपर्युक्त दो महाकवियों की धारा को और आगे प्रवाहित किया इस प्रकार हिन्दी जैन साहित्य के इन तीन महाकवियों ने अध्यात्म की जो धारा प्रवाहित की, वह आज भी जैन समाज के लिये दीपक का कार्य करती है। इन तीन महाकवियों में मध्यमणि के रूप में प्रतिष्ठित महाकवि द्यानतराय अपने आध्यात्मिक पदों एवं प्रतिदिन उपयोग में आने वाली आरतियों, पूजाओं तथा अनेक स्तोत्रों के रचयिता होने के कारण जैन श्रावकों के गले का हार हैं। ऐसे भक्त एवं आध्यात्मिक भावों से ओत-प्रोत महाकवि द्यानतराय के पूर्वज मूलतः लालपुर के निवासी थे। बाद में वे आगरा में आकर बस गये और यहीं आगरा में महाकवि द्यानतराय का जन्म वि.सं. 1733 में हुआ था। इनके पितामह का नाम वीरदास और पिता का नाम श्यामदास था। इनका विवाह वि. सं. 1748 में मात्र पन्द्रह वर्ष की आयु में हो गया था। आगरा उस समय न केवल व्यापार के लिये प्रसिद्ध था, अपितु जैनधर्म का भी अच्छा केन्द्र था। वहाँ उस समय धर्म के क्षेत्र में पण्डित बिहारीदास और पण्डित मानसिंह का अच्छा प्रभाव था, जिसका लाभ महाकवि द्यानतराय को सहज उपलब्ध हो गया था। फलस्वरूप उनके उपदेशों से द्यानतराय की जैनधर्म पर प्रगाढ़ श्रद्धा हो गई थी और वे वि. सं. 1777 में सम्मेदशिखर की यात्रा पर भी गये थे। बाद में वे आगरा से दिल्ली चले गये पण्डित द्यानतराय का कृतित्व : महाकवि पण्डित द्यानतराय ने जैन हिन्दी काव्य साहित्य के विकास में अविस्मरणीय योगदान किया है। जहाँ एक ओर उनकी काव्य-रचनाओं के द्वारा जैन आध्यात्मिक एवं दार्शनिक साहित्य का संरक्षण एवं संवर्द्धन हुआ है, वहीं दूसरी ओर उनकी रचनाओं से हिन्दी काव्य साहित्य का भी उत्कर्ष हुआ है। पण्डित द्यानतराय की काव्य-कला बेजोड़ है। यह अलग बात है कि एक संप्रदाय विशेष से जुड़े होने के कारण हिन्दी के इतिहासकारों ने उनके साहित्य का उचित मूल्यांकन नहीं किया है। पण्डित द्यानतराय द्वारा लिखित जो ग्रन्थ अद्यावधि उपलब्ध हुये हैं, उनके नाम इस प्रकार हैं-धर्मविलास अथवा द्यानतविलास, चरचा शतक, छहढाला, आगम विलास, भेदविज्ञान या आत्मानुभव, 108 नामों की गुणमाला, विविध पूजाएँ, आरतियाँ एवं आध्यात्मिक पद-साहित्य आदि। इस पर आगे विस्तार से विचार किया गया है। धर्मविलास या द्यानतविलास : पण्डित द्यानतराय द्वारा लिखित प्रस्तुत ग्रंथ वर्तमान में धर्मविलास या द्यानतविलास के
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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