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________________ हाड़ौती की जैन मूर्तिकला परंपरा -ललित शर्मा मध्ययुग में हाड़ा राजपूत शासकों के प्राधान्य के कारण राजस्थान का दक्षिणी पूर्वी भू-भाग हाड़ौती कहलाता था, यद्यपि वर्तमान में इस क्षेत्र को प्रशासनिक दृष्टि से हाड़ौती संभाग कहा जाता है और इसमें बूंदी, बारां, कोटा, झालावाड़ जिले आते हैं। यह भू-भाग पूर्व मध्ययुग से ही जैनधर्म एवं संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र रहा है। इस अवधि में यहाँ निरंतर अनेक तीर्थकरों की सुन्दर मूर्तियों से युक्त मन्दिरों का निर्माण होता रहा, परन्तु इनका शोध की दृष्टि से आजतक विवेचन नहीं हो पाया। यद्यपि इस भू-भाग में आज भी अनेक जैन मंदिर कलात्मक दृष्टि से न केवल सुन्दर हैं अपितु उनमें स्थापित तीर्थकर मूर्तियाँ हमारे देश की अमूल्य सांस्कृतिक एवं कलात्मक धरोहर हैं। ज्ञातव्य है कि विगत दो दशकों में इस भू-भाग में खोज एवं उत्खनन के दौरान अनेक दुर्लभ जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं जो आज भी कोटा एवं झालावाड़ के शासकीय पुरातत्त्व संग्रहालयों में दर्शित हैं। इन सभी के अध्ययन से इस क्षेत्र में जैनधर्म की प्राचीनता एवं प्रभाव प्रमाणित होता है। कोटा क्षेत्र में कोटा, अटरु, शेरगढ़, रामगढ़, बारां, बूंदी, नैनवा, केशवरायपाटन सहित झालावाड़ जिले क्षेत्र के पचपहाड़, रंगपाटन, झालरापाटन, गागरोन, अकलेरा, चाँदखेड़ी, नागेश्वर पार्श्वनाथ आदि इस संभाग के ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ से जैनधर्म की अमूल्य पुरासामग्री मिली है, परन्तु इनका परिचयात्मक कला सर्वेक्षण न होने से यह विपुल धरोहर भारतीय मूर्तिकला के इतिहास में आज भी अज्ञात और अप्रकाशित है। क्षेत्र में जैनधर्म का उक्त दृष्टि से अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि यहाँ 8वीं सदी से 17वीं सदी के मध्य जैन संस्कृति खूब पुष्पित एवं पल्लवित हुई। इसमें 11वीं से 13वीं सदी के मध्य का युग तो जैनमूर्ति एवं स्थापत्यकला की दृष्टि से स्वर्णिम काल समझा जाता है। इन कालों में एवं इसके बाद के कालों में देश के विभिन्न भागों के जैन आचार्यों, श्रावकों-श्राविकाओं एवं श्रेष्ठी वर्गों ने इस क्षेत्र की जैन संस्कृति, कला को विकसित कर प्रतिष्ठित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा तत्कालीन शासकों की उदार प्रवृत्ति के कारण भी यहाँ जैनधर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार हुआ। इन शासकों ने जैन धर्म को विकसित करने में सदैव धार्मिक सहिष्णुता तथा सहृदयता का परिचय दिया। जैन मंदिरों की निरन्तर प्रगति में जैन मुनियों का भी याप्त योगदान रहा, जिन्होंने इस क्षेत्र के विभिन्न भागों के जैन मन्दिरों में तीर्थकरों और जैनमतीय यक्ष-यक्षियों की मूर्तियाँ स्थापित करवाई। उक्त युग की अनेक कलात्मक जैन मूर्तियाँ राजकीय पुरातत्त्व संग्रहालय कोटा में संरक्षित हैं। यह मूर्तियाँ इस साक्ष्य की प्रबल प्रमाण हैं कि यहाँ जैनधर्म का प्रभाव काफी विकसित था। इन मूर्तियों के अध्ययन करने पर इनमें सबसे बड़ी विशिष्टता यह दिखाई
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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