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________________ अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 प्राचीन काल में अनेक पत्नियाँ रखने का रिवाज था। अतः स्वाभाविक है कि किसी के प्रति अधिक अनुराग हो। अतः पट्टानी को विशेष अधिकार प्राप्त थे। कभी-कभी रानियों में धार्मिक प्रतिद्वंद्विता भी हो जाती थी। काम्पिल्यपुर के राजा सिंहध्वज की वप्रा और लक्ष्मी नामक रानियाँ भिन्न-भिन्न धर्मों की थी। उनमें अपने-अपने रथ को पहले निकालने पर विरोध हो गया। इस कारण राजकुमार हरिषेण को कुछ समय के लिए अपना घर छोड़ना पड़ा। कनकोदरी अपनी सौत द्वारा जिनप्रतिमा की पूजा सहन नहीं कर सकी, अतः उसने उसे बाहर रखवा दिया। परिवार में माँ का बड़ा सम्मान था। संतान का माँ के नाम पर नाम होना सिद्ध करता है कि माँ की स्थिति सम्मानप्रद थी। लक्ष्मण को सौमित्र तथा सीता को विदेहा या वैदेही कहा गया है। जब पुत्र किसी कार्य से गृहत्याग करते थे या प्रव्रज्या ग्रहण करते थे तो वे अपनी माँ की अनुमति लेते थे। जब वे लौटते थे, तब भी माँ के पास आते थे। सौतेली माँ भी उसी प्रकार सम्मान की अधिकारिणी थी। माता-पिता गुरु माने जाते थे। किसी की माँ को मारना बहुत बड़ा पाप माना जाता था। उस पुत्र को अयोग्य माना जाता था, जो अपनी सगी या सौतेली मां को जरा भी कष्ट देता था। हरिषेण घर छोड़कर चला गया और योग्य स्थिति को प्राप्त करने के बाद वह घर वापिस लौटा और माँ की इच्छा पूरी की। राम का वनगमन उनकी सौतेली मां कैकेयी की इच्छापूर्ति के लिए था। लवण तथा अंकुश राम के द्वारा अपनी मां के निष्कासन के अपमान को सहन नहीं कर सके। उन्होंने तभी विश्राम लिया, जबकि राम से युद्ध हो गया और राम को अपनी भूल स्वीकार करनी पड़ी। यद्यपि उनके इस कार्य का माँ ने विरोध किया था। हनुमान ने महेन्द्र पर आक्रमण कर दिया क्योंकि उन्होंने उनकी मां को अपने यहां शरण नहीं दी थी, जबकि उसकी सास ने गलतफहमी के कारण अञ्जना को निकाल दिया था। नारी के चरित्र के साथ चपलता लगी हुई है। सीता यद्यपि निर्दोष थी, फिरभी कृतान्तवक्र द्वारा वन में छोड़ दिए जाने पर कहती हैं कि स्त्रियाँ चंचल होती हैं। इस कारण नारी अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति की दासी बन जाती है। कैकेयी का भरत को राजसिंहासन दिलाने की माँग इसी प्रकार की है। उसे एक वरदान देने का वायदा किया गया था, जिसे दशरथ ने राम तथा लक्ष्मण की सहमति से पूरा किया। कैकेयी ने इसके परिणामों का विचार नहीं किया। भरत को वह अपने पास रखना चाहती थी, वर मांगकर वह इसमें सफल हुई। जब राम और लक्ष्मण वन को चले गए तो उनकी माताओं को अपार कष्ट हुआ। यहां तक कि कैकेयी को भी अपनी सौतों की यातना सहन नहीं हुई। अतः उसने राम तथा लक्ष्मण को वापिस चलने हेतु भरत को भेजा और स्वयं भी गई। किन्तु प्रतिज्ञा, प्रतिज्ञा थी, वचन, वचन थे। अत: राम कैकेयी के आग्रह पर भी नहीं लौटे। वहां कैकेयी ने अपने चपल मन और दूरदर्शिता की कमी के विषय में सोचा। लालच का दोष भी नारियों में पाया जाता है। रत्नप्रभा ने धन के लालच में अपनी पुत्री को किसी अन्य व्यक्ति को सौंप दिया, यद्यपि उसके पति ने उसे धनदत्त को दे दिया था। अहिदेव और महिदेव की माँ अपने पुत्रों से जवाहरात की सुरक्षा के लिए उन्हें विष
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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