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________________ अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 है। जिस निषेधात्मक शब्द के द्वारा व्युत्पत्तिमान् और शुद्ध पद का प्रतिषेध होता है, उसका प्रतिपक्षी अवश्य होता है। अजीव निषेधवाची शब्द यौगिक तथा अखण्डजीव का निषेध करता है। इसलिए अजीव के प्रतिपक्षी जीव का अस्तित्व विद्यमान है। उपर्युक्त आत्मवादी विश्लेषण से स्पष्ट है कि शरीरादि से भिन्न आत्मा की स्वतंत्र सत्ता वास्तविक रूप से अस्तित्व में है। संदर्भ 1. सर्वार्थसिद्धि पृष्ठ 7 2. वैशेषिकसूत्र 3/2/4-13 3. न्यायसूत्र 3/1/10 4. भारतीय दर्शन- सं. डॉ. नंद किशोर देवराज पृष्ठ 311 5. (1) सांख्यकारिका 17 (2) सांख्यप्रवचनसूत्र 1/66 (3) योगसूत्र 4/24 6. (1) श्लोकवार्तिक/ आत्मवाद (2) तंत्रवार्तिकः प्रभाकर पृष्ठ 516 7. ब्रह्मसूत्र, शंकर भाष्य 1/1/5 पृष्ठ 14 8. वही 9. ब्रह्मसूत्र शंकरभाष्य 2/3/7 पृष्ठ 542 10. वही 11. सर्वार्थसिद्धि 5/19 पृष्ठ 288 12. तत्त्वार्थवार्तिक 5/19 38 पृष्ठ 473 13. तत्त्वार्थवार्तिक 2/8/18/ पृष्ठ 123 14. तत्त्वार्थवार्तिक 2/8/18/ पृष्ठ 122 15. तत्त्वार्थवार्तिक 2/8/19 पृष्ठ 122 16. स्याद्वादमंजरी कारिका 17 पृष्ठ 173 17. विशेषावश्यक भाष्य- गणधरवाद गाथा 1558-60 18. शास्त्रवार्तासमुच्चय 1/78 19. सत्यशासनपरीक्षा पृष्ठ 14 20. स्याद्वादसिद्धि कारिका 9-10 21. (1) न्यायकुमदचंद्र पृष्ठ 348 (2) प्रमेयकमलमार्तण्ड पृ. 112 22. न्यायकुमुदचंद्र पृष्ठ 649 23. न्यायकुमुदचंद्र पृष्ठ 349 24. प्रमेयकमलमार्तण्ड पृष्ठ 113 25. स्याद्वादमंजरी कारिका 17 पृष्ठ 174 26. षड्दर्शनसमुच्चय टीका- गुणरत्नसूरि का, 40, पृष्ठ 230 - भगवान् पुष्पदन्त नाथ जन्मभूमि काकन्दी, दिग, जैन तीर्थक्षेत्र खुखुन्दु, देवरिया (उ.प्र.)
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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