________________
अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011
15. मनुष्य के उत्तम आठ फल कहे गये हैं उनमें देवपूजा प्रथम है।
देवपूजा दया दानं, तीर्थयात्रा जपस्तपः।
शास्त्रं परोपकारत्वं, मर्त्यजन्मफलाष्टकम्॥ संदर्भ
1. पद्मनंदी पंचविंशतिका, आ. पद्मनंदी, संपा.-पं. जवाहरलाल शास्त्री, श्लोक 403, पृ.191 2. रत्नकरण्ड श्रावकाचार, आ. समंतभद्र, संपा.-डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य, श्लोक 5, वीर
सेवा मंदिर ट्रस्ट, नई दिल्ली, 1972
अष्टपाहुड-संस्कृत टीका, दिग. जैन संस्थान, महावीरजी, पृ. 100 4. जैन कला में प्रतीक, ले. पवनकुमार जैन, जैनेन्द्र साहित्य सदन, ललितपुर, 1983, पृ. 51 5. स्वयंभूस्तोत्र, आचार्य समंतभद्र श्लोक 57
भगवती आराधना, आचार्य शिवार्य, संपा.-कैलाशचन्द्र सिद्धांतशास्त्री, जैन संस्कृति संरक्षक
संघ सोलापुर, गाथा 45, पृष्ठ 85, 2006 7. वही, गाथा 46, पृष्ठ 88 8. गहरे पानी पैठ, आ. रजनीश, संपा.- महीपाल, प्रथम संस्करण 1971, मूर्ति पूजा, पृ.
119-120 9. वही, पृष्ठ 107 10. वही, पृष्ठ 133 11. श्रावकाचार संग्रह, भाग 1, संपा, पं. हीरालाल शास्त्री, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर
2001 गाथा 428, पृ.171 12. वही, गाथा 447, पृष्ठ 173 13. वही, गाथा 448-449 पृष्ठ 173 14. वही, गाथा 451-458, पृष्ठ 174 15. वही, गाथा 495, पृष्ठ 180 16. श्रावकाचार संग्रह, भाग 2 में संकलित 'धर्म संग्रह श्रावकाचार', संपा. पं. हीरालाल शास्त्री,
जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, 2001 षष्ठ अधिकार, पृष्ठ 156, श्लोक 55 17. जैन पूजा काव्य-एक चिंतन, लेखक- डॉ. दयाचंद जैन साहित्याचार्य सागर, भारतीय ज्ञानपीठ
2003, पृष्ठ 86 18. वही, श्लोक 73,77, 78 19. श्रावकाचार संग्रह, भाग 3, श्लोक 136-138 20. वही, प्रश्नोत्तर श्रावकाचार 20 वां परिच्छेद, पृ. 378, श्लोक 207-223 का सार संक्षेप 21. श्रावकाचार संग्रह, भाग 2 में धर्मोपदेश पीयूष वर्ष श्रावकाचार, पं. हीरालाल शास्त्री, जैन
संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, 2001 पृष्ठ 492, श्लोक 206
-जवाहर वार्ड, बीना, जिला-सागर (म.प्र.)-470117