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________________ अनेकान्त 64/3, जुलाई-सितम्बर 2011 11 करना, जिनचैत्य-चैत्यालय निर्माण कराना, अपनी अचल संपत्ति मंदिर के लिए लगा देना, संयमी एवं महाव्रती मुनियों को पूजा के बाद आहार देना 'नित्यमह पूजा' है। २. आष्टाह्निक (नंदीश्वर ) पूजा- नंदीश्वर पर्व (कार्तिक, फाल्गुन, आषाढ़ मास) के अंतिम आठ दिन-अष्टमी से पूर्णिमा तक भव्यजनों द्वारा की जाने वाली पूजा। ३. चतुर्मुख महामह पूजा- मण्डलेश्वर-महामण्डलेश्वर राजाओं के द्वारा जिनेन्द्र भगवान् का पूजा मण्डप में चतुर्मुख प्रतिमा विराजमान करके चारों ही दिशाओं में खड़े होकर पूजन करना। ४. कल्पद्रुम पूजा- चक्रवर्ती या मुकुटबद्ध मण्डलेश्वर राजाओं द्वारा भक्ति से महोत्सव के साथ जो पूजन की जाती है वह वह कल्पद्रुम पूजन होती है। ५. ऐन्द्रध्वज पूजा- इन्द्रादिक देवों द्वारा समारोह के साथ जो पूजन की जाती है। जिनेन्द्र भगवान् की पूजन आठ द्रव्यों से की जाती है उसके क्या प्रयोजन हैं। उनकी सार्थकता को संक्षेप में वर्णित किया जाता है अष्ट द्रव्यों की सार्थकता- जल से स्नानकर शुद्ध धोती-दुपट्टा पहनकर फिर सकलीकरण के जल से शुद्ध होकर जिन भगवान् की अष्ट द्रव्यों से पूजन करना चाहिए। १. जल- जिनके वचन संसार ताप को नाश करने वाले हैं, जो बाह्य एवं अंतरंग मल से रहित हैं, भवसागर से पार करने वाले हैं ऐसे जिनेन्द्र भगवान् का जल से दु:खों एवं पापों की शांति के लिए एवं जन्म-जरा-मरण के विनाशार्थ पूजन किया जाता है। २. सुगंधित द्रव्य या चंदन- जिनका कमनीय शरीर अपने आप सुगंधित है उनके चरण कमलों की पूजा चंदनादि द्रव्य से संसार-संताप के विनाश के लिए की जाती है। ३. अक्षत- जिन्होंने अष्टकर्म रूपी दुर्जय शत्रु को नाश कर दिया। जिनका अंत:करण पूर्ण शुद्ध और पवित्र है ऐसे भगवान् के चरण-कमलों को अखण्ड व पवित्र अक्षत से अक्षय पद (परमात्मा) की प्राप्ति के लिए पूजन करते हैं। ४. पुष्प- जिन्होंने काम का सर्वथा नाश किया ऐसे जिनेन्द्र प्रभु की अर्चना कमल, केवड़ा, गुलाब, चमेली, मालती आदि सुगंधित पुष्पों से काम एवं इन्द्रियों के विजय हेतु की जाती है। ५. नैवेद्य- केवलज्ञान की प्राप्ति कर ली ऐसे प्रभु की पूजन मनोहर व्यंजनादि नैवेद्यों से भूख-प्यास के सर्वथा विनाश हेतु पूजन करते हैं। ६. दीप- जिनके केवलज्ञान प्रकाश से दिशाएँ दैदीप्यमान हैं ऐसे जिनेन्द्रदेव की पूजन दीप के स्वर्णिम प्रकाश से अज्ञानतम को हरने के लिए करते हैं। ७. धूप- जिन्होंने कर्म समूह के गहन वन को जला दिया ऐसे प्रभु की अर्चना कृष्णा गुरु आदि सुगंधित द्रव्यों से बनी धूप को अग्नि में जलाकर अष्टकर्मो के नाश हेतु तथा उत्कृष्ट सौभाग्य प्राप्ति के लिए की जाती है। ८. फल- स्वर्गादिक एवं मोक्ष फल को देने वाले प्रभु की पूजा आम, अनार, केला, नारंगी, बीजपुर आदि उत्तम पके फलों को समर्पित कर मोक्षफल की प्राप्ति के लिए की
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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