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________________ सर्वार्थसिद्धि का वृत्तिवैशिष्ट्य -डॉ. जयकुमार जैन आचार्य पूज्यपाद द्वारा प्रणीत सर्वार्थसिद्धि तत्त्वार्थसूत्र पर एक वृत्ति है। इस वृत्ति की महत्ता इसी से जानी जा सकती है कि इसके ऊपर अनेक टीकायें लिखी गई हैं। सम्प्रति निम्नलिखित टीकायें उपलब्ध हैं: 1. आचार्य भट्टाकलंकदेवकृत तत्त्वार्थराजवार्तिक 2. आचार्य प्रभाचन्द्रविरचित तत्त्वार्थवृत्ति 3. पण्डित जयचन्द्र छावड़ाकृत भाषावचनिका वृत्ति का लक्षण वृत्ति शब्द वृत् धातु से क्तिन् प्रत्यय का निष्पन्न रूप है। इसका टीका एवं भाष्य के अर्थ में भी प्रयोग होता रहा है। कहीं-कहीं वृत्ति को विवृति या विवरण भी कहा गया है। जिसमें पदों का आश्रय लेकर पदसंघटना के औचित्य के साथ प्रत्येक पद का विवेचन किया जाता है, उसे वृत्ति कहते हैं। टीका शब्द टीक् धातु से क प्रत्यय एवं स्त्रीत्वविवक्षा में टाप् करने पर निष्पन्न होता है। टीक् धातु भ्वादिगणी आत्मनेपदी है जिसका अर्थ गमन या अवगमन (ज्ञान) है। इसकी व्युत्पत्ति टीक्यते गम्यते ग्रन्थार्थोऽनया की गई है। भाष्य शब्द भाष् धातु से ण्यत् प्रत्यय का निष्पन्न रूप है। सूत्रों की ऐसी टीका या वृत्ति को भाष्य कहा जाता है, जिसमें शब्दशः व्याख्या एवं टिप्पण होते हैं। कहा भी गया है 'सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र पदैः सूत्रानुसारिभिः। स्वपदानि च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदो विदुः।। कहीं वृत्ति एवं टीका पर भाष्य लिखे गये हैं तो कभी भाष्य पर टीकायें भी लिखी गई हैं। पातञ्जल महाभाष्य पर कैयट की टीका और उस पर नागोजि भट्ट की टिप्पणी अत्यन्त प्रसिद्ध हैं। ऐसा प्रतीत होता है व्याख्याकारों ने अपनी व्याख्या को कभी वृत्ति, कभी विवृति, कभी टीका, कभी भाष्य, कभी विवरण, कभी पञ्जिका तो कभी पञ्चिका कहा है। शब्दगत/ अर्थगत भिन्नता होने पर भी व्यावहारिक भिन्नता दृष्टिगत नहीं होती है। इसी कारण कसायपाहुड में वृत्तिसूत्र के विशद व्याख्यान को टीका कहा गया है 'वित्तिसुत्तविवरणाए टीकाववएसादो।' (कसायपाहुड २/१/२२) भाषात्मक वृत्तिवैशिष्ट्य आचार्य पूज्यपाद ने सर्वार्थसिद्धि में प्रत्येक अध्याय के अन्त में पुष्पिका दी है।
SR No.538064
Book TitleAnekant 2011 Book 64 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2011
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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