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अध्यात्म पद
चिन्मूरत दृगधारी की
चिन्तमूरत दृगधारी की मोहि, रीति लगति है अटापटी।।
बाहिर नारकि-कृत दुःख भोगे, अन्तर सुखरस गटागटी।
रमति अनेक सुरनि संग पै तिस परिणतितें नित हटाहटी।।
ज्ञान विराग शक्तितें विधिफल भोगत पै विधि घटाघटी।
सदन निवासी तदपि उदासी, तातें आस्रव छटाछटी।
नारक पशु त्रिय षंढ विकलत्रय, प्रकृतिनकी है कटाकटी।।
संयम धरि न सके पै संयम धारन की उर चटापटी।
तास सुयश गुन की 'दौलत' के लगी रहै नित रटारटी।।
- कविवर दौलतराम जी