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________________ अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010 कृति का नाम श्रावकाचार संहिता, लेखक विद्यारत्न डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन, सनावद (म.प्र.) प्रकाशक एवं प्राप्ति स्थान- श्री अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत्परिषद्, महामंत्री कार्यालय एल 65, न्यू इंदिरानगर, बुरहानपुर (म.प्र.), पृ. 190, मूल्य 100रू0 1 - समीक्ष्य कृति में प्रसिद्ध लेखक तथा पत्रकार विद्यारत्न डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन ने आचार, विचार एवं व्यवहार को आधार बनाकर जैनधर्म में वर्णित श्रावकों की नियमानुसार शास्त्र सम्मत चर्या का सरल, सुबोध और बोधगम्य भाषा में विभिन्न उद्धरणों के साथ विस्तृत वर्णन कर प्रस्तुत किया है। धर्म के शाश्वत स्वरूप से आरंभ होकर 42 उपशीर्षकों में विभक्त विषय सामग्री में जैन धर्म के तीन रत्न सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की महती आवश्यकता बताते हुए सुयोग्य लेखक ने बताया है कि देव, शास्त्र, गुरु पर सम्यक् श्रद्धान किए बिना कोई भी धार्मिक कार्य सफलीभूत नहीं हो सकता। सच्चे देव को वीतराग, सर्वज्ञ और आगम का ईश बताकर देव, अदेव, कुदेव और देवाधिदेव से परिचित कराकर सच्चे देव की पूजा-अर्चना की प्रेरणा, जिनवाणी को सच्चे शास्त्र तथा परिग्रह रहित दिगम्बर मुनियों को सच्चा गुरु मानने की भावना को परिपक्व बनाते हुए लेखक ने अहिंसा का मार्ग ग्रहण कर अणुव्रतों को मानसिक, शारीरिक विकारों को दूर करने का आवश्यक साध न बताया। शराब, तन, मन और धन को खराब करती है, असमय मौत शराब के कारण होती है, चित्त और पित्त विकार शराब की देन है, मांसाहार किसी भी दृष्टि से सेवन योग्य नहीं, चारित्र धारण करने के लिए सप्त व्यसन त्याग, रात्रि भोजन के दुष्परिणामों के साथ दिन में भोजन की प्रेरणा, सच्चे देव की श्रद्धा के साथ दर्शन, वंदन, नमन-पूजन, अष्ट द्रव्यों से ही पूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान, दिगम्बर मुनि का आहारचर्या में लेखक ने जोर देकर बताया है कि श्रावकों को आहारदान में नगद धनराशि न देकर स्वयं उपस्थित होकर अपने करकमलों से श्रद्धा और भक्ति के साथ मुनियों और साधुओं को आहार देना चाहिए। यह आहार 46 दोषों से रहित तथा सात गुणों से सहित होना चाहिए। दान का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि गृहस्थ की प्रतिष्ठा दान से ही होती है । सुखी होने के लिए मैत्री, प्रमोद, करूणा और मध्यस्थ भावों की उपयोगिता, असिधाराव्रत का महत्व, महीने के चार पर्व, अष्टान्हिका, पंच कल्याणक महोत्सव, दान धर्म प्रवर्त्तक, वीरशासन जयंती, दीपावली जैसे प्रमुख पर्वो का वर्णन किया गया है और अंत में बताया है कि 84
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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