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________________ 26 अनेकान्त 63/4, अक्टूबर-दिसम्बर 2010 पञ्चेन्द्रियजय संयम है। स-समिदि-महव्वदाणुव्वदाई संजमो। (धव. १/१२) वद-समिदि- वावारे कसाय-णिग्गही जयी। माया-मिच्छ-णिदाणं च चागां साहग ण-संजमो॥ सम्मदंसणं विणा ण संजमो सम्मं जमो णियंतण-णिग्गहो संजमो। सम्मत्त-अविणाभावी एसो। सो सम्मदंसण-सहिदो। सव्वमुत्ति-कारगो। मिच्छ-दिठिणो संजमो उत्तमसंजमो णत्थिा समिति, महाव्रत एवं अणुव्रत का होना संयम है। व्रत (अणुव्रत, महाव्रत) समिति के व्यापार में रत, कषाय निग्रही माया, मिथ्या एवं निदानजयी एवं त्यागी साधक के संयम है। सम्यक् यम, नियंत्रण या निग्रह होना संयम है। यह संयम सम्यक्त्व का अविनाभावी है, वह सम्यग्दर्शन सहित होता है। यह सर्व मुक्ति का उपाय है। मिथ्यादृष्टियों का संयम उत्तम संयम नहीं है। णाणाविधसंजमेसुंच पाणीसंजमो इंदिय संजमो। जीवसंजमो- थावर, वियलिंदिय-पचिंदय-जीवाणं रक्खणं। अजीवसंजमो-वस्थ, पज्ञ-आसण-सेज्जादि-पोग्गल-साहणाणं जदणं आदरणं-णिक्खेवणं। नाना प्रकार के संयमों में प्राणी संयम और इंद्रिय सयंम भी है। जीवसंयम-स्थावर, विकलेन्द्रिय, एवं पाँच इन्द्रिय जीवों का रक्षण। अजीव संयम-वस्त्र, पात्र, आसन, शैय्या आदि पुद्गल साधनों को यत्न पूर्वक रखना उठाना। पेहासंजमो- अणुपेहण-पुव्वगं वत्थु-आदाण-णिक्खेवणं च उवजोगो। उवेक्खासंजमो-सावज्ज-कज्जेसुं च उवेक्खणं तस्सिं ण अणुमोदणं भागो य। अवहिच्चसंजमो- विहि-पुव्वगं मल-मुत्तादिपरिट्ठावणं। पमज्जणसंजमो- जदण-पुव्वगं उवयरणाइंपमज्जणं। वयणसंजमो- हिद-मिद-पिय-वयणं भासणं। कायसंजमो- जदण-पुव्वगं देह चेट्ठा। मणसंजमो- मणे णो दुव्भावो। प्रेक्षासंयम- अनुप्रेक्षण पूर्वक वस्तुओं को रखना-उठाना एवं उपयोग करना। उपेक्षासंयमसावध कार्यों में उपेक्षाभाव, उसमें भाग न लेना और न अनुमोदना करना। अपहृत्यसंयमविधि पूर्वक मल-मूत्र आदि का परिष्ठापन। प्रमार्जन संयम- यत्नपूर्वक उपकरणों को प्रमार्जित करना। वचनसंयम- हित-मित-प्रिय-वचन बोलना। कायसंयम- यत्नपूर्वक शरीर
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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