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________________ अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010 जैन दर्शन में मन एक तुलनात्मक अध्ययन डॉ. नेमिचन्द्र जैन (सेवानिवृत्त प्राचार्य) संसार में रहने वाला प्राणी शरीर ओर आत्मा सहित होता है। प्राणी उसे कहते हैं, जिसके प्राण होते हैं। जैन दर्शन में आचार्यों ने मूलतः चार प्राण माने हैं परन्तु भेद करने पर दश प्राण माने गये यथा 31 तिक्कालेचदुपाणा इन्दिय बलमाठ आणपाणो य ववहारो सो जीवो णिच्चयणयदो दु चेतणा जस्स । द्रव्य संग्रह, गा. 3 मूलतः इन्द्रिय, बल, आयु और श्वासोच्छ्वास ये चार प्राण है जिसके ये प्राण होते हैं उसे व्यवहार नय से प्राणी या जीव कहते हैं। निश्चय नय से जिसमें चेतना होती है वह जीव है। इन्द्रियां पांच मनबल, वचनबल, काय (शरीर) बल, आयु और श्वासोच्छ्वास कुल दस प्राण माने गये हैं। जिनके इनमें से कोई भी प्राण एवं आत्मा होती है तो उसे जीवित प्राणी कहा जाता है। प्राण का संबंध शरीर से होता है अतः वे सब जड़ तत्व के अन्तर्गत आते हैं। चेतना सहित प्राण धारण करने वाले को प्राणी कहा जाता है और जीवित माना जाता है। जिनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व एवं कार्य होता है उसे इन्द्रिय कहते हैं। आचार्य उमा स्वामी ने तत्त्वार्थ सूत्र में लिखा है पञ्चेन्द्रियाणि सूत्र 15 अ.2 स्पर्शनरसनघ्राणचक्षु श्रोत्राणि, सूत्र 19 अ. 2 जैन दर्शन में संसारी जीव दो प्रकार के माने गये हैं। त्रस एवं स्थावर संसारिणस्वस स्थावराः त.सूत्र अ.2सू. 121 स्थावर नाम कर्म के उदय से प्राप्त हुई अवस्था विशेष को स्थावर कहते हैं। ऐसे जीव पांच प्रकार के होते हैं। पृथ्वी, अप, तेज, वायु और वनस्पति काया इन सबके मात्र एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है और प्राण चार होते हैं जैसे स्पर्शन इन्द्रिय, कायबल, आयु और श्वासोच्छ्वास | । - त्रस नाम कर्म के उदय से दो इन्द्रिय से पांच इन्द्रिय तक के जीव त्रस हैडीन्द्रियादयस्वसाः त.सू. आ.2-14 दो इन्द्रिय जीव के 6 प्राण होते हैं- स्पर्शन, रसना, कायवल, वचनवल, आयु और श्वासोच्छ्वास जैसे लट, शंख, जोख, केचुआ आदि। तीन इन्द्रिय जीव के 7 प्राण होते हैं। स्पर्शन, रसना, घ्राण, कायबल, वचनबल, आयु और श्वासोच्छ्वास जैसे चींटी, चीटा आदि। चार इन्द्रिय जीव के आठ प्राण होते हैं। स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, कायबल, वचनबल, आयु, श्वासोच्छ्वास जैसे मक्खी मच्छर भौंरा आदि । पञ्चेन्द्रिय जीव दो प्रकार के होते हैं, एक मन सहित जैसे- गाय, भैंस, मनुष्य पक्षी आदि । (2) मन रहित- मन रहित कोई कोई तोता और सांप। मन रहित जीव के स्पर्शन, रसना, प्राण, चक्षु, कर्ण, कायबल, बचनबल, आयु, श्वासोच्छ्वास नौ प्राण होते हैं। मनसहित जीव के स्पर्शन, रसना, घ्रण चक्षु, कर्ण, कायबल, वचनबल, मनबल, आयु, श्वासोच्छ्वास दस -
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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