________________
अध्यात्म पद
जीव तू मूढपना कित पायो ?
जीवे तू मूढपना कित पायो ? सब जग स्वारथ को चाहत है, स्वारथ तोहि न भायो जीव तू ।।
अशुचि अचेत दुस्ट तन माहीं, कहा जान विरमायो ?
परम अतिन्द्री निज सुख हरकै, विषय रोग लिपटायो । जीव तू ।।
चेतन नाम भयो जड़, काहे अपनो नाम गवायो, तीन लोक को राज छांडिकै, भीख मांग न लजायो जीव तू ।।
1
मूढपना मिथ्या जब छूटै, तब तू संत कहायो, "द्यानत" सुख अनन्त शिव विलसो, यो सतगुरु बतायो। जीव तू ।।
कविवर द्यानतराय जी