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________________ 96 अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 सकता है आगे के संस्करणों में इसमें कोई संशोधन सूझ जाये। ये कुछ बाते हैं जिन्हें यदि मैं न देखू तो मुझे लगता है कि भगवान महावीर पर अब तक की पढ़ी तमाम पुस्तकों में यह पुस्तक विषय, भाषाशैली एवं प्रभाव की दृष्टि से सर्वोत्कृष्ट है। अब तक उपरोक्त बातों का ध्यान किसी समीक्षक ने उन्हें क्यों नहीं दिलाया मुझे इस बात पर अचरज है। लेखक साहित्य एवं दर्शन के वरिष्ठ अध्येता हैं। रत्नकरण्डश्रावकाचार, समाधितंत्र, इष्टोपदेश, परमप्पयायु, योगसार, अष्टपाहुड, ध्यानशतक, द्रव्य संग्रह आदि ग्रंथों के अनुवाद भी आपने किये हैं। भाषा विज्ञान संबन्धी ग्रंथ भी आपने लिखे हैं। अतः अपने दीर्घकालिक अनुभवों तथा चिंतन का निचोड़ आपने अपनी इस कृति में उतारा है। इस दृष्टि से समीक्ष्य कृति अत्यन्त उपयोगी भी है। सुना है, इस कृति के अंग्रेजी सहित कई भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी छप चुके हैं। अतः उपर्युक्त संशोधनों के साथ यदि कृतियाँ प्रकाशित हों तो सर्वोत्तम होगा। -सहायक आचार्य, जैनदर्शन विभाग श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ नई दिल्ली-११००१६
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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