SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 78 है। अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 पूरी कथा अलौकिक घटनाओं से भरी है। जीवन्धर स्वामी का चरित्र-चित्रण इतना उत्कृष्ट है कि उससे उनका क्षत्र चूड़ामणि अर्थात् क्षत्रियों का शिरोमणिपना अनायास सिद्ध हो जाता है। इस चम्पू काव्य की रचना में कवि ने विशेष कौशल दिखलाया है। अलंकार की पुट और कोमलकान्त पदावली बरवश पाठक के मन को अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। इसमें कवि की निसर्गसिद्ध प्रतिभा झलकती है, इसीलिए प्रकरणानुकूल अर्थ और अर्थानुकूल शब्दों के चयन में उसे अल्प भी प्रयत्न नहीं करना पड़ा है। इस ग्रंथ के अनेक पद्य तो इतने कौतुकावह हैं कि उन्हें पढ़कर कवि की प्रतिभा का अलौकिक चमत्कार दृष्टिगोचर होने लगता है। नगरी वर्णन, राजवर्णन, राज्ञी वर्णन, चन्द्रोदय, सूर्योदय, वन क्रीडा, जल क्रीडा, युद्ध आदि काव्य के समस्त वर्णनीय विषयों को कवि ने यथास्थान इतना सजाकर रखा है कि देखते ही बनाता है। गद्यचिन्तामणि और क्षत्र चूडामणि के समान इसमें भी ग्यारह लम्भ हैं। जीवन्धर चम्पू के गद्य और पद्य दोनों ही श्लेष, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, परिसंख्या, विरोधाभास तथा भ्रान्तिमान् आदि अलंकारों से अलंकृत हैं माधुर्य, ओज, प्रसाद गुणों का निदर्शन पदे पदे होता है। रसों के अनुसार इस चम्पू काव्य में वैदर्भी, लाटी, पांचाली और गौड़ी- इन चारों रीतियों का अच्छा प्रयोग हुआ है। जीवन्धर चम्पू का अंगी रस- शांतरस है। अन्य सभी रसों का यथास्थान सन्निवेशन हुआ है। इसमें प्रयुक्त प्रमुख छंद इस प्रकार हैं 1. शार्दूलविक्रीडित - 1, 19, 20, 22, 28, 34, 67 2, 14, 23 2. स्रग्धरा उपजाति, आर्या, अनुष्टप, इन्द्रवजा वसन्ततिलका, मालिनी, मालभारिणी, शालिनी, मन्दाक्रान्ता, वंशस्थ, उपेन्द्रवज्रा शिखरिणी, पृथ्वी, रथोद्धता, स्वागता, द्रुतविलम्बित, हरिणी, पुष्पिताग्रा, मञ्जुभाषिणी, भुजंगप्रयात, पंचचामर आदि भी यथास्थान आये हैं। ३. भरतेश्वराभ्युदय चम्पू " असाधारण विद्वान् पण्डितप्रवर आशाधर जी को आचार्यकल्प विशेषण से संबोधित किया जाता है। इसके द्वारा प्रणीत भरतेश्वाराभ्युदय चम्पू' प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के पुत्र भरत के चरित को आधार बनाकर प्रस्तुत किया गया है। श्रीमद् भागवत पुराण में वर्णित 22 अवतारों में आठवें अवतार ऋषभ हैं। यह ऋषभ जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं। आठवीं शती से पूर्व ही आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण की रचना की, जिसमें ऋषभदेव के चरित्र के अतिरिक्त छब्बीसवें से अड़तीसर्वे पर्व (26-38 पर्व) तक भरत का चरित वर्णित है। अरिष्टनेमि पुराण या जैन हरिवंश पुराण के ग्यारहवें एवं बारहवें पर्व में भी भरत का चरित वर्णित है। आचार्यकल्प पण्डितप्रवर आशाधर विक्रम संवत् 1300 ( 1243 ई.) में विद्यमान थे। उन्होंने धर्म, दर्शन, साहित्य आदि विषयों पर अनेक ग्रंथों की रचना की है। वे मध्यप्रदेश
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy