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________________ अनेकान्त 63/1, जनवरी-मार्च 2010 "सिद्धार्थसत्कामहिताय वेश्या तथार्थितृप्त्यै खलु कामधेनुः। सुधर्मकार्य प्रतिसेविकेव बभूव सारड्गविलोचना सा॥"" (ङ) वृषभ (बैल) वैष्णव एवं शैव संप्रदाय में वृषभ को भगवान शंकर का वाहन माना गया है। जिसे "नंदी" के नाम से पुकारा जाता है। इसलिए हिन्दू धर्म में वृषभ की पूजा होती है। समस्त जैन तीर्थकरों की माताओं ने भी अपने स्वप्नों में पशु के दर्शन किए और बाद में इसी के समान श्रेष्ठ पुत्रों की प्राप्ति किया। इस महाकाव्य में भी रानी त्रिशला ने द्वितीय स्वप्न मे बैल के दर्शन किए जैसा कि आचार्य श्री ने लिखा है- द्वितीय स्वप्न में रानी ने ऐसा बैल देखा जो चाँदी के पर्वत के समान ऊँचा, चार पैर वाले पशुओं का नाथ, सींगो से युक्त, शुक्ल वर्ण वाला था। “समुन्नतं पादचतुष्कनाथं समुज्ज्वलं शृंग विशेषशोभम्।। बैल के विषय में कहावत है कि डूंडा (बिना सीगों वाला) बैल से अनिष्ट एवं सींग युक्त (सींगो वाला) बैल से शुभ होता है। कृषक भी ऊँची सीगों वाले एंव श्वेत रंग वाले बैल को पालने हेतु अधिक रुचि लेते हैं। जो समृद्धि का विशेष द्योतक माना जाता है। (च) वानर (बन्दर) हरि, मर्कट आदि शब्द वानर के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। वानर अत्यन्त ही उद्दण्ड स्वभाव का पशु है। वह चञ्चल चित्त वाला होता है। वैष्णव मतानुसार 'वानर' को श्रेष्ठ माना जाता है और उसे अवध्य बताया गया है। ऐसी प्रसिद्धि है, कि यदि वानर का वध होता है तो, वह विभिन्न विघ्नों का कारण होता है। नारद मोह के समय भगवान विष्णु ने नारद को सांसारिकता से मुक्त करने हेतु नारद को वरदान स्वरूप 'हरि' (बन्दर) का रूप प्रदान किया था। रामायण एवं रामचरितमानस जैसे महाकाव्यों में 'वानर' का विशेष उल्लेख हुआ है। वैष्णव परम्परानुसार 'हनुमान' भी वानर ही थे। जिनकी पूजा प्रत्येक वैष्णवमतानुयायी करते हैं। इसलिए आचार्य श्री ने भी इसका प्रयोग इस महाकाव्य में पाँचवें सर्ग में सुमेरु पर्वत के वर्णन में किया है। वहाँ उन्होंने लिखा है, कि हरि-वानर वृक्षों को तोड़-फोड़ कर उन्हें पीड़ा पहुँचा रहे हैं "समानसंज्ञा ग्रहराजकस्य मुहर्मुहस्तान् हरयः समस्ताः। तुदन्ति नानाविधिविक्रियाभिः स्वसंज्ञपक्षा न हि के पृथिव्याम् ॥" (छ) अश्व (घोड़ा) __ 'अश्व' उत्तम सवारी एवं युद्ध के लिए सर्वोत्तम माना गया है। आंग्लभाषा के लेखक के अनुसार घोड़े का निर्माण विधाता (ब्रह्मा) ने सब जीवों के अंत में किया। जिसे वायु निर्माण आदि के अवशेष पदार्थ से बनाने के कारण हवा में दौड़ना अतीव रुचिकर होता है। घोड़े की हिनहिनाहट एवं टापों की आवाज से युद्ध की सूचना भी प्राप्त होती है। यह शुद्ध शाकाहारी पशु है। राजाओं के यहाँ इनकी संख्या अधिक होती थी। सुमेरु पर्वत के वर्णन में आचार्य श्री ने लिखा है कि, सुमेरु को घोड़े अपने मुख से निकले सफेद फेनों से जिनेन्द्र रूप चन्द्रमा के आगे नक्षत्र समूह की शोभा से युक्त आकाश के समान बनाते
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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