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________________ अनेकान्त 63/3, जुलाई-सितम्बर 2010 49 म में छूट दी गई है) लेकिन जैनागम में संकल्पी हिंसा के त्याग को अतीव आवश्यक माना है। उद्योगी हिंसा गृहस्थ स्व और परिवारजनों एवं आश्रितों के लिये रोटी, कपड़ा और मकान संबन्धी मूलभूत आवश्यकताओं हेतु कृषि, शिल्प, उद्योग, व्यापार आदि आजीविका के साधनों में न चाहते हुए भी जो कमोवेश हिंसा होती है, वह उद्योगी हिंसा है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा के अनुसार श्रावक का व्यापार, दया और अहिंसा से युक्त होना चाहिए।' आरम्भी हिंसा गृहस्थ घर-गृहस्थी के कार्यों में जैसे रसोई पकाना, अग्नि जलाना-बुझाना, बुहारी लगाना, पानी भरना, वस्त्र और शरीर को स्वच्छ करना, आवास बनाना, पशुपालन करना, रोगी की परिचर्या करना और जमीन खोदना आदि ऐसे अपरिहार्य कार्य हैं, जिनमें हिंसा होते हुए भी गृहस्थ इन कार्यों से निवृत्त नहीं हो सकता। सागारधर्मामृत में इन कार्यों को सदा अप्रमत्त और दयाभाव के साथ सतत जीव रक्षा हेतु सजग रहने का निर्देश प्राप्त होता है। पण्डिताचार्य आशाधर जी के अनुसार पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक इन पांच प्रकार के एकेन्द्रिय जीवों की पूर्णरूपेण रक्षा गृहस्थाश्रम में संभव नहीं है, क्योंकि मकान बनाने हेतु पृथिवी का खोदन करना होता है और साथ ही जल, वायु, अग्नि और वनस्पति का भी उपयोग करन पड़ता है। पर गृहस्थ की अहिंसा इसी में समाहित है कि वह इन जीवों के अनावश्यक घात से बचे।" विरोधी हिंसा जब कोई आततायी हमारे शील, न्यायपूर्वक अर्जित धन और मातृभूति पर आक्रमण कर अपने अधीन करने की कोशिश करता है, ऐसी परिस्थिति में इन सबकी रक्षार्थ जो हिंसा होती है वह विरोधी हिंसा है। विरोधी हिंसा गृहस्थ का कर्तव्य है। जैनधर्म में वर्णित गृहस्थ की अहिंसा का पालन करते हुए जैन सम्राट खारवेल ने डेमेट्रियस को मथुरा से सिंधुतट तक खदेड़कर देश को पराधीन होने से बचाया था। जैनधर्म भौतिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की पराधीनता के विरुद्ध रहा है। सुखशांति की वृद्धि के लिये, धर्म मार्ग को अक्षुण्ण रखने के लिये, अहिंसकों को प्रोत्साहित करने के लिए और सदाचार की वृद्धि के लिये दुष्टों का निग्रह करना धर्म है। संकल्पी हिंसा__ मैं इसका प्राणान्त करूँगा या किसी दूसरे से करवाकर रहूँगा, ऐसी इच्छा से किसी जीव का वध करने के लिये उद्यत होना संकल्पी हिंसा है। संकल्पी हिंसा गृहस्थाचरण के सर्वथा प्रतिकूल है।' संकल्पपूर्वक किसी प्राणी के प्राणों का हरण नहीं करना चाहिये। जो संकल्पी हिंसा का पूर्णतया त्यागी होता है, वस्तुतः वही जैन आगम की दृष्टि में सच्चा गृहस्थ है। आतंकवाद एवं मांसभक्षण के लिये की गई हिंसा एवं बलात्कार जैसे निंदनीय कृत्य इसी संकल्पी हिंसा के अंग हैं। जानबूझकर, अकारण और दुराग्रह आदि से की गयी
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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