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________________ अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 धर्म ही है। इस प्रकार विविध चिन्तन से स्पष्ट है कि धर्म आत्मा का स्वभाव है, जो सदैव बना रहता है, किन्तु अपने अपने जीव के परिणाम से वह विविध रूप को प्राप्त होता है। इसलिए परिणामों की अपेक्षा शुभ, अशुभ और शुद्ध उपयोग वाला जो धर्म है वह इस बात की ओर संकेत करता है कि सभी के चिंतन के पश्चात् शुभ और अशुभ दोनों ही मोक्ष में सहायक नहीं है। परमात्म की दृष्टि से विचार करने पर धर्म आत्मा का स्वभाव है इसलिए शुद्ध भाव युक्त आत्मा मोक्ष प्राप्त करता है। संदर्भ: 1. 2. सर्वार्थसिद्धि 9/2/789 3. 4. 5. 6. रत्नकरण्ड श्रावकाचार 12 परमात्प प्रकाश 2/68 ( महापुराण 47/382 ), ( चारित्रसागर 3 / 1 ) प्रवचनसार/ तात्पर्यवृत्ति 7/9/9 द्रव्य संग्रह / टीका 35 पंचाध्यायी उत्तरार्ध 7/5 7. बोधपाहुड 25 ( नियमसार/ तात्पर्यवृत्ति 6 में उद्धृत) (दर्शन पाहुड टीका 2/2/20) 8. सर्वार्थसिद्धि 9/7/8/0/2 9. कार्तिकेयानुप्रेक्षा 478 ( दर्शन पाहुड/टीका/9/8) 10. रत्नकरण्ड श्रावकाचार 3 11. प्रवचनसार/ तात्पर्यवृत्ति 8/9/18 12. परमात्मप्रकाश - 2/3/116/10 13. परमात्मप्रकाश / टीका 2/11-4213/14 14. परमात्मप्रकाश / टीका 2/134/251/2 15. प्रवचनसार 7 16. भावपाहुड 83 ( परमात्मप्रकाश 2/68) 17. भावपाहुड 85 18. प्रवचनसार / तत्त्वप्रदीपिका 7,8 65 19. पंचास्तिकाय / तात्पर्यवृत्ति 85 / 143 20. बारस अणुपेक्खा / 60, (तत्त्वार्थसूत्र 9/6), भगवती आराधना / वि.46/154/10 21. पद्मनन्दि पंचविंशतिका 6/4 (बारस अणुपेक्खा / 68), (कार्तिकेयानुप्रेक्षा / 304 ), ( चारित्रसार 3 / 1), (पंचाध्यायी उत्तरार्ध 7/7) 22. पंचविंशतिका 1/7 (द्रव्य संग्रह टीका 35 / 145/3) 23. प्रवचनसार 9 24. परमात्म प्रकाश/ टीका 2/68/190/8 -साक्षी, 23, शान्ति नगर, ए-ब्लॉक, केशवनगर रोड, अक्षांश काम्पलेक्स के सामने, उदयपुर (राजस्थान)
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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