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________________ अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 उपसंहार : ___ अढाई हजार वर्ष पूर्व जबकि विश्व में राजतंत्र और साम्राज्यवादी प्रवृत्ति की धूम थी, भगवान पार्श्वनाथ के अनुयायी चेटक द्वारा लिच्छवी गणतंत्र की स्थापना कर 'निजी जीवन की पावनता के साथ सामूहिक जीवन के प्रति अपनापन और लोक कल्याण की नवीन शासन पद्धति का आदर्श प्रस्तुत किया। उस समय उन्होंने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि बीसवीं सदी में उस प्रजातंत्र (गणतंत्र) की धूम विश्व में होगी। गौतम बुद्ध को भिक्षु-संघ की कार्य-प्रणाली एवं जीवन शुद्धि का मार्ग भी उससे प्रभावित है। इस दृष्टि से, भगवान महावीर की जन्मभूमि का गणतंत्र ज्ञान, कर्म, श्रद्धा तथा धर्म-संघ की व्यवस्था का ठोस आधार बना जो विश्व को अभिभूत किये हैं। इतना ही नहीं" भगवान महावीर का तत्त्व चिंतन, विश्व की दार्शनिक व्याख्या, आध्यात्मिकता, अहिंसा-अपरिग्रह की अवधारणा आदि ऐसे घटक हैं जो मानवीय जीवन के उत्थान और निःश्रेयस् की प्राप्ति के व्यवहारिक सूत्र सदाकाल सहायक एवं फलीभूत होंगे। हमें बुद्ध-समान उन्मुक्त ह्वदय से लिच्छविगणतंत्र एवं भगवान महावीर के अमूल्य दिव्यावदान का अभिनंदन कर उसे मान्यता प्रदान करना चाहिए। इसके मूल्यांकन हेतु देशरत्न महामहिम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद जी की भावनाओं को उद्धृत करना समीचीन होगा, जो अनेक एतिहासिक तथ्यों को स्वतः प्रकट करता है। "(वैशाली) यह नगरी लिच्छवियों और वज्जियों के गणराज्य की राजधानी थी। प्राचीनकाल में गणराज्य अथवा प्रजातंत्र का यह स्थान प्रसिद्ध केन्द्र था। एक समय था जब इस भूमि में किसी राजा का शासन नहीं था, जनता के सात हजार से अधिक प्रतिनिधि सारा राज-काल चलाते थे और न्याय का विधान इतना सुन्दर था कि स्वयं भगवान बुद्ध ने अपने मुख से उसकी प्रशंसा की थी। निश्चित ही लोक शासन की सारी चेतना वहाँ मूर्तरूप से देखी जाती थीं। इसके अतिरिक्त वैशाली भगवान महावीर की जन्मभूमि है और भगवान बुद्ध को भी बहुत प्रिय थी।" मानवीय स्तर पर कोई छोटा या बड़ा नहीं होता। सभी का अपना- अपना मूल्य और महत्व होता है, फिर भी जिसका जो योगदान है, उसका उस रूप में मूल्यांकन करना हमारे उदात्त और निष्पक्ष सोच की अंतरंग अभिव्यक्ति है। इस दृष्टि से भगवान महावीर की जन्मभूमि वासोकुण्ड-वैशाली और उसकी गणराज्यीय/प्रजातंत्रीय पद्धति को नमन कर श्रद्धा सुमन अर्पित करें और अभिनंदन करें। ऐसा कोई भी प्रयास जो इस महासत्य को आवृत करता हो, निश्चित ही हमारी संकीर्ण, एकांगी-आग्रही एवं साम्राज्यवादी सोच को प्रतिध्वनित करेगा। सांस्कृतिक-तीर्थ वासोकुण्ड-वैशाली और गणतंत्रीय सोच का प्रकाश स्तम्भ जयवन्त हो और युगों-युगों तक मानव-समाज को आलोकित करें। संदर्भ : 1. श्री रामधारी सिंह दिनकर (कविता) Homage to Vaishali 2nd edition, 1985, पृ. 299 (वैशाली अभिनंदन ग्रंथ) 2. आचार्य गुणभद्रः उत्तर पुराण पर्व 74 श्लोक 251-252 पृ. 460 वही, पर्व 75 श्लोक
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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