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________________ 38 अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 का संदेश दिया। नमनीय है- भारत का संविधान जिसकी मूल प्रति के पृष्ठ पर भगवान महावीर का चित्र और अहिंसा का योगदान अंकित है।48 महात्मा बुद्ध : वैशाली गणराज्य का बौद्धभिक्षु-संघ-श्वस्था में योगदान : महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के शाक्य राजा शुद्धोधन के यहाँ हुआ। उनकी माता का नाम माया था। उनका पूरा नाम था-सिद्धार्थ गौतम। वे जन्म से ही करुणापूर्ण थे। उनका विवाह यशोधरा नाम की सुन्दरी से हुआ। राहुल नाम का पुत्र भी हुआ। शाश्वत सुख की खोज में तीस वर्ष की आयु में एक रात्रि में गृह त्याग दिया। आध्यात्मिक गुरु की खोज में वे वैशाली आये। महावस्तु ग्रंथ के अनुसार वैशाली में उन्होंने आलार कालाम जैन-महायोगी को अपना गुरु बनाया और योगविद्या सीखी। महापरिनिर्वाण सुत्त (4,35) के अनसार आलार कालाम, जब ध्यान मग्न होते थे तब मार्ग में जाती हुई 500 बैलगाड़ियाँ भी उन्हें दिखायी नहीं देती थी और न वे उनकी आवाज सुन पाते थे। बुद्ध के दूसरे गुरु महायोगी उद्रक रामपुत्र थे। बुद्ध ने भगवान पार्श्वनाथ के संप्रदाय में दीक्षा ली थी। कठोर तपश्चरण के कारण एवं निर्बल और हड्डी के ढांचे मात्र जैसे हो गये थे। बौद्ध ग्रंथ मज्झिमनिकाय, महासीहनाद सुत्त-12 में बुद्ध की श्रमणचर्या का सजीव वर्णन है। आचार्य देवसेन कृत दर्शनसार, श्लोक 6 से भी इसका समर्थन होता है। श्लोक इस प्रकार है सिरिपासणाहतित्थे सरयूतीरे पलासणयरत्थो। पिहियासवस्स सिस्सो महासुदो बुड्ढकित्तगुणी॥ अर्थ-श्री पार्श्वनाथ भगवान के तीर्थकाल में सरयू नदी के किनारे पलाश नगर में विराजमान श्री पिहितास्रव मुनि का शिष्य बुद्धकीर्ति मुनि हुआ। बुद्धकीर्ति मुनि तथागत बुद्ध का पूर्व नाम है। वैशाली को आंख भर कर देख अपने प्रिय शिष्य से कहा- आनंद! तथागत (बुद्ध) यह अंतिम बार वैशाली का दर्शन कर रहा है।"52 उस दयामूर्ति के हृदयोद्गार थे-"आनंद! रमणीय है वैशाली, रमणीय है उसका उदयन चैत्य, गोतमक-चैत्य, सप्रभक-चैत्य बहुपुत्रक-चैत्य, सारंदद-चैत्य।" अम्बपाली वन में उपस्थित वैशाली वासी लिच्छवियों को देखकर बुद्ध ने कहा था- "देखो भिक्षुओ! लिच्छवियों की परिषद को, देखो भिक्षुओं! इस लिच्छवि-परिषद को त्रायास्त्रिंस (देवताओं) की परिषद समझो।"53 चापल-चैत्य में बुद्ध ने ई.पू. 482 की माघ-पूर्णिमा के आस-पास कहा था- 'आज से तीन मास बाद तथागत का निर्वाण होगा।' यह संबोधन उन्होंने शैतान 'मार' को किया। कुशीनगर में बुद्ध का निर्वाण हुआ। बुद्ध निर्वाण (483 ईसा पूर्व) के तीस साल बाद मगधाधिपति अजातशत्रु ने वैशाली को ध्वस्त कर दिया और वह मगध के राजतंत्र के आधीन हो गयी। बौद्धधर्म के इतिहास की कई स्मृतियाँ वैशाली से जुड़ी हैं। वैशाली नगर के उत्तर-पूर्व की तरफ महावन या शालवन नामक एक आश्रम था। उसके अधिपति गोश्रृंगी
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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