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________________ अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 कार्यपालिका लिच्छवियों के मुख्य अधिकारी थे-संस्था-राज, (राजा), उपराजा, सेनापति, अष्टकुलिक, व्यवहारादिक, विनिश्चय महामात्य आदि। राजा और उपराज, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति कहा जाता था। न्यायपालिका वैशाली प्रजातंत्र की न्याय-व्यवस्था के व्यवस्थित स्वरूप का ज्ञान दीघनिकाय की अष्टकथा' से मिलती है। "परंपरा से चला आया वज्जिधर्म यह था कि वज्जि के शासक 'यह चोर है, अपराधी है' न कहकर आदमी को विनिश्चय-महामात्य (न्यायाधीश) के हाथ में दे देते थे। वह विचार करता, अपराधी न होने पर छोड़ देता, अपराधी होने पर अपने कुछ न कह कर व्यवहारिक (न्यायाध्यक्ष) को दे देता। ...... वह भी अपराधी जानने पर सूत्रध र को दे देता। ....... वह भी विचार कर निरपराध होने पर छोड़ देता, अपराधी होने पर अष्ट कुलिक को दे देता। वह भी वैसा ही करके सेनापति को, सेनापति उपराज (उपाध्यक्ष) को और उपराज राजा (गणपति) को दे देता। राजा विचार कर यदि अपराधी न होता तो छोड़ देता और अपराधी होने पर प्रवेणि-पुस्तक (दण्डविधान) बंचवाता। प्रवेणि-पुस्तक में लिखा रहता, कि अमुक अपराध का अमुक दण्ड है। अपराध को उससे मिला कर दण्ड दिया जाता।" 'वैशाली-गणतंत्र' नामक आलेख में श्री राजमल जैन ने वैशाली- गणतंत्र का वर्णन सांगोपाग संदर्भ सहित किया है, जिज्ञाषुजन उससे ज्ञान वृद्धि कर सकते हैं। सुदृढ़ राष्ट्ररक्षा लोक-सर्वेक्षण के समय श्रीराम नरेश सिंह, भू.पू. विधायक, वैशाली ने बताया कि लिच्छवी- जन गणराज्य की रक्षा-सुरक्षा के प्रति जागरूक थे। उनके पास रथ-मूसल ब्रह्मास्त्र था जो सारथी रहित था। जब भी कोई शत्रु गणराज्य की सीमा में प्रवेश करता उसकी सूचना घंटे की टंकार से सबको मिल जाती थी। उस स्थान को घंटारों कहा जाता वज्जि संघ के सात अपारिहारिक....... दीघ निकाय” में वज्जिसंघ के सात सूत्रों का वर्णन भगवान बुद्ध और उनके प्रध न शिष्य आनंद के मध्य हुए वार्तालाप से उद्भूत हुए। ये सूत्र वज्जिसंघ की सफलता और समृद्धि के सूत्र हैं। भगवान बुद्ध ने इन्हीं सूत्रों के आधार पर भिक्षु संघ की स्थापना की। जैन और बौद्ध साहित्य की अनुश्रुतियों से ज्ञात होता है कि बिम्बसार- श्रेणिक पुत्र अजातशत्रु (कुणिक) वैशाली गणतंत्र की समृद्धि से ईर्ष्या करता था और अपनी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति के कारण वैशाली अपने राज्य में सम्मिलित कर लेना चाहता था। उसने ब्राह्यण मंत्री वर्षकार को बुद्ध के पास टोह लेने और प्रस्तावित आक्रमण के विषय में बुद्ध की सम्मति लेने भेजा। उस समय बुद्ध मगध के अंतिम वर्षावास के समय राजगृही के पास
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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