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________________ अनेकान्त 63/2, अप्रैल-जून 2010 12. भाग 1 पृ.141 पर लिखा है कि भरतेश्वर की 96 हजार रानियाँ हैं। परन्तु इसके बाद भी पृ. 265 पर 300 कन्याओं से, पृ.271 पर 320 कन्याओं से, पृ.272 पर 400 कन्याओं से तथा पृ.330 पर 2000 कन्याओं से शादी की चर्चा है। इससे ध्वनित होता है कि भरतेश्वर की 96 हजार से भी अधिक बहुत सी रानियाँ थीं जो आगम सम्मत नहीं है। 13. भाग 2, पृ.4 पर लिखा है कि बाहुबलि मुनिराज के मन में शल्य थी कि यह क्षेत्र चक्रवर्ती का है। मैं इस क्षेत्र में अन्न-पान ग्रहण नहीं करूँगा, इस गर्व के कारण से उनको ध्यान की सिद्धि नहीं हो रही थी। जबकि आदिपुराण पर्व 36 में श्लो. 186 में स्पष्ट लिखा है कि बाहुबलि के हृदय में यह विचार था कि वह भरतेश्वर मुझसे संक्लेश को प्राप्त हुआ है। इन दोनों प्रकरणों में इतना अन्तर क्यों ? ____14. भाग 2, पृ.30 पर लिखा है कि जयकुमार और सुलोचना के विवाह के अवसर पर भरतेश्वर के पुत्र अर्ककीर्ति और जयकुमार का युद्ध नहीं हुआ। जबकि आदिपुराण पर्व 44 में अर्ककीर्ति और जयकुमार के बीच घनघोर युद्ध का वर्णन है। 15. भाग 2, पृ. 53 पर लिखा है कि भरत की माँ यशस्वती के नीहार नहीं होता था। जबकि तीर्थकर की माता के नीहार नहीं होता है, ऐसा आगम में उल्लेख है, चक्रवर्ती की माँ को नीहार नहीं होता हो, ऐसा उचित नहीं। 16. दीक्षा के समय भरतेश्वर की माँ को मुनिराजों ने पिच्छी और आत्मसार नामक पुस्तक दिलवाई, ऐसा वर्णन भाग 2, पृ.53 पर है। जबकि उस अवसर्पिणी के तृतीय काल में ग्रंथ होने का कोई उल्लेख प्राप्त नहीं हुआ। 17. भाग 2, पृ.83 पर सम्राट द्वारा 72 जिनमंदिरों का निर्माण एवं उनकी पंचकल्याणक पूजा उल्लेख है। यह प्रकरण भी आगम सम्मत नहीं है। तृतीय चतुर्थ काल में पंचकल्याणक होने का कोई प्रसंग प्राप्त नहीं होता और न ही 72 जिनालयों का कोई प्रमाण मिलता है। ___18. भाग 2, पृ.143 पर अणु और परमाणु की परिभाषा गलत दी गई है। सबसे सूक्ष्म पुद्गल को परमाणु कहा है और अनन्त परमाणुओं के मिलने से अणु बनता है ऐसा कहा है। यह परिभाषा आगम विरुद्ध है। 19. भाग 2, पृ.154 पर लिखा है कि अविपाक निर्जरा मुनियों के ही होती है, सबको नहीं। यह प्रकरण भी आगम विरुद्ध है क्योंकि अविपाक निर्जरा तो चारों गतियों के जीवों के होती है। 20. भाग 2, पृ.155 पर लिखा है कि 'कोई-कोई आत्मा पहले घातिया कर्मों को नाश करते हैं और बाद में अघातिया कर्मों को नाश करते हैं। और कोई घातिया और अघातिया कर्मों को एक साथ नाश कर मुक्ति को जाते हैं। ___21. भाग 2, पृ.151 पर प्रकरण दिया है कि कर्म, आत्मा व काल ये तीन पदार्थ अनादि हैं और उसके ही निमित्त से धर्म, अधर्म व आकाश कार्यकारी हुए। इसलिए वे
SR No.538063
Book TitleAnekant 2010 Book 63 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2010
Total Pages384
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size1 MB
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