SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनेकान्त 61 1-2-3-4 181 में भगवान् अजितनाथ के श्वेताम्बर जैन मन्दिर का निर्माण हुआ। 4 इन्हीं ऐतिहासिक सन्दर्भ ग्रन्थों के अनुसार अयोध्या में विद्यमान प्राचीन जैन मन्दिरों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है - 1. आदिनाथ का मन्दिर . यह मन्दिर स्वर्गद्वार के पास मुराई टोले में एक ऊंचे टीले पर है जो शाहजूरान के टीले के नाम से प्रसिद्ध है। मन्दिर के निकट मुसलमानों की कितनी ही कब्र और एक मस्जिद है। मन्दिर में तीर्थङ्कर आदिनाथ के चरणचिह्न बने हैं जिनके दर्शनार्थ यहां तीर्थ यात्री आते हैं। 2. अजितनाथ का मन्दिर - यह मन्दिर इटौआ (सप्तसागर) के पश्चिम में है। इसमें एक मूर्ति और शिलालेख भी है। इस मन्दिर का निर्माण संवत् 1781 में नवाब शुजाउद्दौला के खजानची केसरी सिंह ने नवाब की आज्ञानुसार करवाया था। 3. अभिनन्दननाथ का मन्दिर सराय के निकट है। यह मन्दिर भी संवत् 1781 से पहले बन चुका था। 4. सुमतिनाथ का मन्दिर - रामकोट के भीतर है। अवध गजेटियर के अनुसार इस मन्दिर में पार्श्वनाथ की दो और नेमिनाथ की तीन मूर्तियां हैं। ___5. अनन्तनाथ का मन्दिर यह मन्दिर गोलाघाट नाले के पास एक ऊंचे टीले पर है। इसका प्राकृतिक दृश्य अत्यन्त मनोहर है। इन सभी प्राचीन जैन मन्दिगें मं तीर्थङ्करों के चरणचिह्न बने हैं जिनकी वन्दना करने के लिए प्रतिवर्ष हजागं तीर्थयात्री आते हैं। 6. आदिनाथ का मन्दिर (रायगंज) - उपर्युक्त प्राचीन जैन मन्दिरों के अतिरिक्त बीसवीं शताब्दी में भी अनेक जैन मन्दिरों और यात्री धर्मशालाओं का अयोध्या में निर्माण हुआ है। स्टेशन में डेढ़ कि० मी० दृर रायगंज मोहल्ले में एक विशाल दिगम्बर जैन मन्दिर का निर्माण जैन धर्माचार्य आचार्य श्री देशभूपण जी की प्रेरणा से हुआ। 'आस्था और चिन्तन' के प्रबन्ध सम्पादक श्री सुमत प्रसाद जैन के अनुमार आचार्य श्री देशभृषण जी की प्रेरणा के अनुरूप मकगना के श्वेत संगमरमर की 33 फुट ऊंची भगवान आदिनाथ की भव्य मूर्ति अयोध्या के लिए विशेष रूप से बनाई गई थी। मृति इतनी भनाज्ञ एवं आकर्षक थी कि महान उद्योगकृत मंठ जुगल किशोर जी बिड़ला इस मूर्ति को दिल्ली स्थित बिड़ला मन्दिर में स्थापित करने की इच्छा रखते थे। सन 1965 में मूर्ति-प्रतिष्ठा तथा पंचकल्याणक महोत्सव में सम्मिलित होने के लिए आचार्य श्री देशभृषण जी संघ सहित अयोध्या पधारे तथा हिन्दू समाज एवं जैन समाज के पारस्परिक सद्भाव के वातावरण में मूर्ति -प्रतिष्ठा का आयोजन सम्पन्न कराया।
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy