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________________ अनेकान्त 61 1-2-3-4 सर्वदा विद्यमान रहता है। " जैन पौराणिक भूगोल के अनुसार इन्हीं तीन लोकों में से मध्यलोक असंख्यात द्वीपों और समुद्रों से आवेष्टित है।" इन्हीं द्वीपों में सबसे पहला द्वीप 'जम्बूद्वीप' है जिसकी आधुनिक सन्दर्भ में एशिया महाद्वीप के साथ पहचान की जा सकती है। आदिपुराण के अनुसार लवण समुद्र से घिरा हुआ थाली के समान गोलाकार जम्बूद्वीप मध्यलोक के मध्यभाग में अवस्थित है जिसकी चौड़ाई एक लाख योजन बताई गई है तथा इसके बीचों-बीच मेरुपर्वत स्थित है। इस जम्बूद्वीप के अन्तर्गत छह कुलपर्वत निषध, नील, रुक्मी और शिखरी; सात क्षेत्र भरत, हैमवत, हरि, विदेह, हैरण्यक और ऐरावत 19 तथा चौदह नदियां - गंगा, सिन्धु, रोहित, रोहितास्या, हरित्, हरिकान्ता, सीता, सीतोदा, नारी, नरकान्ता, सुवर्णकूला, रुप्यकूला, रक्ता और रक्तोदा आती हैं । हिमवन्त, महाहिमवन्त, रम्यक, 140 165 - - मध्यमध्यास्य लोकस्य जम्बूद्वीपोऽस्ति मध्यगः । मेरुनाभिः सुवृत्तात्मा लवणाभ्भोधिवेष्टितः ॥ सप्तभि: क्षेत्रविन्यासैः षड्भिश्च कुलपर्वतैः । प्रविभक्तः सरिद्भिश्च लक्षयोजनविस्तृतः ॥ जम्बूद्वीप को लवण समुद्र ने घेरा हुआ है। उसके बाद धातकी खण्ड, कालोद समुद्र, पुष्करवर द्वीप आदि असंख्य द्वीप और समुद्र हैं जो एक दूसरे को वलय की भांति घेरे हुए हैं। पुष्करद्वीप के मध्य में मानुषोत्तर पर्वत विद्यमान हैं जिसके आगे मनुष्य नहीं जा सकता। इस प्रकार जैन पौराणिक मान्यता के अनुसार मनुष्य की गति केवल अढ़ाई द्वीप जम्बूद्वीप, धातकीखण्ड और पुष्करार्धद्वीप तक ही सीमित है, इससे आगे नहीं। आठवां द्वीप नन्दीश्वरद्वीप के रूप में विख्यात है जहां देवों का विहार होता है तथा अन्तिम द्वीप 'स्वयंभूरमण' कहलाता है। 142 संक्षेप में इन्हीं (देवशास्त्रीय) 'मिथॉलॉजिकल' मान्यताओं के परिप्रेक्ष्य में जैन भूगोल का परिचय उल्लेखनीय है । 2. 1 जैन भूगोल के अनुसार अयोध्या जैन भूगोल के अनुसार लगभग 526 योजन विस्तार वाला भरतक्षेत्र क्षुद्र हिमवन्त के दक्षिण में तथा पूर्वी और पश्चिमी समुद्र के मध्य में अवस्थित है। इसके बीचों-बीच पूर्वापर लम्बायमान विजयार्ध पर्वत अथवा वैताढ्य पर्वत है जिसके पूर्व में गंगा और पश्चिम में सिन्धु नदी बहती है। इन दो नदियों तथा विजयाध पर्वत से विभाजित इस भरत क्षेत्र के छह खण्ड हो जाते हैं। 143 विजयार्ध के
SR No.538061
Book TitleAnekant 2008 Book 61 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2008
Total Pages201
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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