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________________ 38 अनेकान्त 60/1-2 प्रथम- प्राचीन भारतीय आर्य भाषा काल द्वितीय- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा काल तृतीय- आधुनिक आर्य भाषा काल प्राचीन भारतीय आर्य भाषा का स्वरूप हमें वैदिक छान्दस भाषा में मिलता है। मध्यकालीन आर्य भाषा का स्वरूप हमें प्राकृत परिवार में मिलता है। इसका विकास ईसा पूर्व 600 से 1000 वर्ष तक माना जाता है। पाली एवं अपभ्रंश भी प्राकृत भाषा परिवार के अन्तर्गत आती है परन्तु इनकी अपनी स्वतंत्र इकाई होने के कारण प्राकृत से पृथक् भी माना जाता है। हिन्दी आदि सभी आधुनिक भाषाओं का विकास-प्राकृत-अपभ्रंश एवं अपभ्रंश से आधुनिक भाषाओं का विकास माना गया है। प्राकृत प्रकाश की प्रस्तावना में संस्कृत एवं प्राकृत के संदर्भ में डा. मण्डन मिश्र ने लिखा है- “प्राकृत एवं संस्कृत की प्राचीनता के विषय में अलग-अलग तरह की व्याख्याएं विभिन्न समीक्षक अपने-अपने दृष्टिकोण से करते आये है।" इस विवाद अथवा तर्कवितर्क से ऊपर उठकर इतना कहना पर्याप्त होगा कि ये दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। इसीलिए संस्कृत-नाटकों में प्राकृत को स्त्री पात्र की भाषा के रूप में महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इसका मूल कारण इस भाषा की मधुरिमा, इसके शब्दों की मोहकता ओर हृदय आर्कषण की स्वाभाविक शक्ति से सम्पन्न होना है। प्राकृत भाषा की उत्पत्ति के विषय में मतैक्य का अभाव हैं। विभिन्न विद्वानों ने इस के उत्थान के संदर्भ में अपने-अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत किये हैं (अ) संस्कृत से प्राकृत की उत्पत्ति :- प्राकृत की प्रकृति संस्कृत है। प्रकृतिः संस्कृतम्। तत्र भवं आगतं वा प्राकतम् । अर्थात् प्राकृत भाषा की प्रकृति संस्कृत है। अतः संस्कृत से जन्य भाषा प्राकृत है। प्राचीन भारतीय साहित्य में इस तथ्य की पुष्टि करने वाली अनेक व्याख्याएं उपस्थित हैं जिनसे संस्कृत से प्राकृत का जन्म होना सिद्ध
SR No.538060
Book TitleAnekant 2007 Book 60 Ank 01 to 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaikumar Jain
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year2007
Total Pages269
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size8 MB
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