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अध्यात्म-पद
छांड़ि दे या बुधि भोरी
छांड़ि दे या बुधि भोरी, वृथा तन से रति जोरी।
यह पर है न रहै थिर पोषत, सकल कुमल की झोरी । यासौं ममता कर अनादितैं, बंधो कर्म की डोरी ।
स दुख जलधि हिलोरी, छांड़ि दे या बुधि भोरी | 11 ||
यह जड़ है तू चेतन, यौं ही अपनावत बरजौरी । सम्यक दर्शन ज्ञान चरण निधि, ये हैं संपत तोरी । सदा विलसौ शिवगोरी, छांड़ि दे या बुधि भोरी । । 2 । । सुखिया भये सदीव जीव जिन, यासौं ममता तोरी । 'दौल' सीख यह लीजै पीजे, ज्ञानपीयूष कटोरी । मिटै परवाह कठोरी, छांड़ि दे या बुधिभोरी । 13 । ।
पण्डितप्रवर दौलतराम जी
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